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________________ की कुयक्तियों वाला और श्रीजिनाज्ञा मुजब वर्तनेवालोंको जूठी कल्पनासे दूषण लगाके अनन्त संसारका हेतु भूत मिथ्यात्यको बढ़ानेवाला पर्युषणा विचार के लेखमै अपमा नाम प्रगट करते लज्जा आवे तो निज शिष्यविद्या विजयजीका नाम लिख देवे तोभी कुछ विशेष आश्चर्य नहीं है सो पाठकवर्ग स्वयं विचार लेवेंगे,-- और काशीनिवासी नातवें महाशयजी जेमतत्व दिग्दर्शन, आत्मोन्नति दिगदर्शन, जैनशिक्षादिग्दर्शन वगैरह छोटे बोटे लेखोंको तो अपने नामसे प्रगट करते हैं तथा विद्या. विनयजीभी अपने गुरुजीका लम्बा चौड़ा नाम समेत जनपत्र में अपना लेख प्रगट करते हैं और छोटी बोटी पुस्तके भी श्रीपशोविजयीकी पाठशाला के नामसे प्रगट करने में माती है परन्तु पर्युषणा विचारके लेखमें न तो सातवे महाशयनीका नाम लिखा तथा विद्याविजयजीनेभी अपने गुरुजीका माम भी नहीं लिखा और अपना निवास ठिकाना भी नहीं लिखा और श्रीयशोविजयजीकी पाठशालाका नाम भी महीं लिखा इसपर भी बुद्धिजन विचार करें तो स्वयं मालूम हो सकेगा कि सातवें महाशयजीने दुनियामें अपनी निन्दाकी शर्मके मारे गुपसुप प्रगट कराया है क्योंकि इतने विद्वान् ऐसे प्रसिद्ध आदमी होकरके भी गच्छके पक्षपातसे ऐसा अनर्थ क्यों किया इसका भेद न खुलनेके वास्त पाठ शालाका तथा पाठशालाके उत्पादकका नाम नहीं लिखा है परन्तु विवेकी बुद्धिजनोंके आगे तो ऐसी धर्तता नहीं खुप सकती है,--- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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