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________________ [ ४ ]. पर्याय अधिक मुनिमयडली वगैरह सब कोई आजाते हैं इसलिये सबको धर्मलाभ देनेकी पर्युषणा विचारके लेख ककी ताकत नहीं होते भी देता है तो बुद्धिकी अजीर्णतामें क्या न्यूनता रही है सो विवेकीजन स्वयं विचारसकतेहैं ; और सातवें महाशयजीने पर्युषणाविचार केलेख में अधिक मासकी गिनती निषेध करनेके लिये इतना परिश्रम किया है परन्तु अधिक मास किसको कहते हैं जिसकी भी तो उनको मालूम नहीं है क्योंकि, देखो दुनियाके व्यवहारमें तिथि कुहिकी तरह दूसरेको अधिक मास कहते हैं। तथा जैनशास्त्रों में भी दूसरेकोही अधिकमास कहा है ॥ और लौकिक पञ्चाङ्गमें दोनों मासके मध्यमें संक्रान्ति रहितकों भधिकमास कहते है परन्तु दिनोंकी गिनती में दोनों मासके ६० दिनांकों बराबर सब कोई लेते हैं इसलिये अधिक मासके दिनोंकी गिनती निषेध नहीं हो सकती है। और सातवें महाशयजी अधिक मासके ३० दिनोंकों गिनती में नहीं लेनेका लिख करके भोले जीवोंको बहकाते हैं परन्तु खास आपही अधिक मासके ३०दिनोंको गिनती में ले करके सर्व व्यवहार करते हैं से। तो प्रत्यक्ष दीखता है तथापि अधिक मासके ३० दिनोंको गिनती में नहीं लेनेका लिख करके भोले जीवोंको बहकाते हैं से तो 'ममजननी वन्ध्या' की तरह प्रत्यक्ष धूर्तताका नमूना है से तो विधेकी जन स्वयं विचार लेखेंगे। और सातवे महाशयजीने अधिकमासको नपुसक निः सत्व ठहराकर उसीको गिनती में छोड़देनेका लिखा है परंतु जब दो भाद्रपद होते हैं तब अधिक मास रूप दूसरे भाद्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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