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________________ [ ३९० ] अब इस जगह विवेकी पाठकवर्गको विचार करना चाहिये कि खास निर्युक्लिकार महाराज अधिकमासको प्रमाण करने वाले थे तथा खास श्रीआवश्यक नियुक्ति में ही अधिक Hraar प्रमाण किया है सो तो प्रगट पाठ है तथापि सातवें महाशयजीने गच्छपक्षके कदाग्रहसें दृष्टिरागियोंको मिथ्यात्व के झगड़े में गेरनेके लिये निर्मुक्तिकार चौदह पूर्वधर महाराज के विरुद्धार्थमें उत्सूत्र भाषणरूप अपनी मति कल्पनासें, निर्युक्तिकी गाथा लिखके उसीके तात्पर्य्यक समझे बिनाही अधिक मासको गिनती में निषेध करनेका वृथा परिश्रम किया सो कितने संसारको वृद्धि करी होगी सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जाने और तत्त्वज्ञ पुरुष भी अपनी बुद्धिमें स्वयं विचार लेवेंगे । अब इस जगह पाठकवर्गको निःसन्देह होनेके लिये नियुक़िकी गाथाका तात्पर्य्यर्थको दिखाता हूं । श्री नियुक्रिकार महाराजने श्री आवश्यक नियुक्ति में क. (६) आवश्यकका वर्णन करते प्रतिक्रमण नामा चौथा आवश्यक में "पडिक्कमणं १ पडिअरणा २, पडिहरणा ३ वारणा ४ जियतिय ५ ॥ जिंदा ६ गरहा 9 सोही ८, पडिक मणं अट्टहा होइ ॥ ३ ॥ इस गाथासे आठ प्रकारके नाम प्रतिक्रमण के कहे फिर अनुक्रमे आठोंही नामोके निक्षेपोंका वर्णन किया हैं और भव्यजीवोंके उपगार के लिये " अढाणे १ पासए २ दुदुकाय ३ विसभोयणा तलाए ४ ॥ दोकमा ५ चितपुति ६ पइमारियाय 9 वत्थेव ८ अट्ठणय" ॥ १२ ॥ इस गाथासे प्रतिक्रमण सम्बन्धी आठ दृष्टांत दिखाये जिसमें पांचवा णियत्ति अर्थात् निवृत्ति सो उन्मार्ग से हट करके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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