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________________ [ ३९ ] भासको गिनतीमें लेनेका सातवें महाशयजीने निषेध किया है सो भी निःकेवल गच्छ पक्षके आग्रहसे और अपनी विद्वत्ता के अभिमानसे दृष्टिरागी अज्ञजीवोंको मिथ्यात्वमें फंसाने के लिये नियुक्तिकार महाराजके अभिप्रायको जाने बिना वृथाही परिश्रम किया है क्योंकि नियुक्तिकार महाराज चौदह पूर्वधर श्रुतकेवली थे इसलिये श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजांका कहा हुवा और गिनतीमें प्रमाण भी करा हुवा अधिक मासको निषेध करके उत्सूत्र भाषण करने वाले बनेंगे यह तो कोई अल्पबुद्धि वाला भी मान्य नहीं करेगा तथापि सातवें महाशयजीने नियुक्तिकी गाथासे अधिक मासको गिनती में लेनेका निषेध करके चौदह पूर्वधर श्रुतकेवली महाराजको भी दूषण लगाते कुछ भी पूर्वापरका विचार विवेक बुद्धिसे हृदय में नहीं किया यह तो बड़ेही अफसोसकी बात है। ___ और खास इसीही श्रीआवश्यक नियुक्निमें समयादि कालकी व्याख्यासे अधिक मासको प्रमाण किया है उसी नियुक्तिको गाथा पर श्रीजिनदासगणि महत्तराचार्यजीने चूर्णिमें, श्रीहरिभद्र सूरिजीने वृहद्धृत्तिमें, श्रीतिलका. चार्यजीने लघुशत्तिमें, और मलधारी श्रीहेमचन्द्रसूरिजीने श्रीविशेषावश्यकवृत्तिमें, खुलासा पूर्वक व्याख्या करी है उसीसे प्रगट पने अधिक मासकी गिनती सिद्ध हैं सो इस जगह विस्तारके कारणसे जपरके पाठोंकों नहीं लिखता हूं परन्तु जिसके देखने की इच्छा होवे सो नियुक्तिके चौवीसथा-अध्ययनके पृष्ठ ५१में, वृहद् यत्तिके पृष्ठ २०६ में और विशेषावश्यकी वृत्तिके पष्ठ ४५ में देख लेना। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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