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________________ [ ३९१ ] सन्मार्ग में प्रवर्तने सम्बन्धी दो कन्याका एक दृष्टांत दिखाया है जिसकी चूर्णिकारने, बृहद् वृत्तिकारने और लघुवृत्तिकारने खुलासा पूर्वक, व्याख्या करी है और द्रव्य निवृत्ति पर दृष्टांत दिखाके, फिर भाव निवृत्ति पर उपनय करके दिखाया है, उसीके सब पाठोंको विस्तार के कारणसे इस जगह नहीं लिखता हूँ परन्तु जिसके देखनेकी इच्छा होवे सो चूर्णिके २६४ पृष्ठ में, तथा वृहद् वृत्तिके २३३ पृष्ठ में देखलेना । और पाठकवर्गको लघुवृत्तिका पाठ इस जगह दिखाता हूं श्रीतिलकाचार्यजी कृत श्री आवश्यक लघुवृत्तिके १९६ पृष्ठ यथा , , एकत्र नगरे शाला, पतिः शालासु तस्य च ॥ धूर्त्तावयंति तेष्वेको, धर्ती मधुरगी सदा ॥१॥ कुविंदस्य सुता तस्य, तेन सार्द्धमयुज्यत ॥ तेनोचे साथ नश्यामो यावद्वेत्ति न कञ्चनः ॥२॥ तयोचेमे वयस्यास्ति, राजपुत्री तथा समं ॥ संकेतो - स्ति यथा द्वाभ्यां पतिरेक करिष्यते ॥ ३॥ तामप्यानयतेनोचे, साथ तामप्यचालयत् ॥ तदा प्रत्यूषे महति गीतं केनाप्यदः स्फुटं ॥ ४ ॥ “ जइ फुल्ला कस्सियारया, अगअहि मासयंमिघुमि ॥ तुह न खमं फुल्लेउ, जद पञ्चंता करिति डमराइं" ॥ " नखमं नयुक्तं प्रत्यंता नीचकाः डमराणि विप्लवरूपाणि शेषं स्पष्ट ॥ श्रुत्वैव राजकन्या सा दध्यौ चतं महातरुम् ॥ उपालब्धो वसंतेन, कर्णिकारोऽथमस्तरुः ॥५॥ पुष्पितो यदि किं युक्तं, तवोत्तमतरोस्त्वया ॥ अधिक मास घोषणा, किं न श्रतेत्यस्य गीः शुभा ॥६॥ चेत्कुबिंदी करोत्येवं, कर्त्तव्यं किं मयापि तन् ॥ निवृत्तासामिषाद्रव, करंडोमेस्ति विस्मृतः ॥ १ ॥ राजसूः कोपि तत्राहि, गोत्रस्त्रासितो ১১ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ܬ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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