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होनेसे फलसे वञ्चित रहोगे, क्योंकि शास्त्र में तो 'चहुएहं मासाणं अद्वरहं पक्माणं' इत्यादि तथा 'बारसण्हं मासाणं चउवीसरह पक्खाणं' इत्यादि पाठ है इसके अतिरिक्त पाठ नहीं है उसके रहने पर यदि नई कल्पना करोगे तो कल्पनाकुशल, आज्ञाका पालन करनेवाला है या नहीं, यह पाठक स्वयं विचार कर सकते हैं)
ऊपरके लेखकी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हूं कि हे सज्जन पुरुषों सातवे महाशयजीके जपरका लेखको देखकर मेरेको बड़ाही आश्चर्य उत्पन्न होता है कि सातवें महाशयजीके विद्वत्ताकी विवेक बुद्धि ( ऊपरका लेख लिखते समय ) किस जगह चली गई होगी सो मासवृद्धिके अभावकी बातको मासवद्धि होतेभी बाल जीवोंको लिख दिखाकरके अपनी बात जमानेके लिये दूसरोंको मिथ्या दूषण लगाते हुवे उत्सूत्र भाषणसें संसार सुद्धिका भय हृदय में क्यों नहीं लाते हैं क्योंकि जिस जिस शास्त्रमें सांवत्सरिक क्षामणाधिकारे बारह मास, चौबीश पक्ष लिखे हैं सो तो निश्चय करके मासवृद्धिके अभावसे चन्द्र संवत्सर संबंधी है नतु मास वृद्धि होतेभी अभिवर्द्धित संवत्सर में क्योंकि मासरद्धि होनेसे तेरह मास और छबीश पक्ष व्यतीत होने पर भी बारह मास और चौवीश पक्षके क्षामणा करना ऐसा कोई भी शास्त्र में नहीं लिखा है। ___ और श्रीचन्द्रप्राप्ति सूत्र में १, तपा तवत्तिमें २, श्रीसूर्यप्राप्ति सूत्रमें ३, तथा तवृत्तिमें ४, प्रीसमवायाङ्गजी सूत्र ५, तथा तवृत्ति, ६, श्रीनिशीपचूर्णिमें ७, श्रीजंबूद्वीपप्राप्ति सूत्रमें , तथा तीनकी पांच पत्तियों में १३, श्रीप्रवचन
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