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________________ [ ३६२ ] और आषाढ़ चौमासीसे पचास दिने अवश्यही पर्युषणा पर्व करनेका सर्वत्र शास्त्रों में कहा है जिसका भी विशेष विस्तार इसीही ग्रन्थकी आदिसें लेकर ऊपर तकमें अनेक जगह छप गया है इसलिये वर्तमान काल में ५० दिनके हिसाब से दूसरे श्रावण में पर्युषणापर्व करना सो शास्त्रानुसार और युक्तिपूर्वक सत्य होनेसें उसी मुजब वर्तनेवालोंको जो सातवें महाशयजीने दूषण लगाया हैं सो निःकेवल संसार वृद्धिके हेतुभूत उत्सूत्र भाषण किया है इस बातको निष्पक्षपाती पाठकवर्ग स्वयं विचार लेवेंगे । और देखिये बड़ेही आश्चर्य की बात है कि सातवें महाशयजी श्रीधर्मविजयजी इतने विद्वान् कहलाते हैं और हरवर्षे गांव गांवमें श्रीकल्पसूत्रका मूल पाठको तथा उन्हीं की वृत्तिको व्याख्यानमें वांचते हैं उसी में ५० दिने पर्युषणा करनेका लिखा है उसी मुजबही दूसरे श्रावणमें ५० दिने पर्युषणा करते हैं जिन्होंको अपनी मति कल्पनायें आज्ञाभङ्गका दूषण लगाना सो विवेकशून्य कदाग्रही अभिनिवेशिक मिथ्यात्वी और अपनी विद्वत्ताको हासी करानेवाले के सिवाय दूसरा कौन होगा सो भी पाठकवर्ग विचार लेवेंगे ; और आगे फिर भी सातवें महाशयजीनें पर्युषणा विचारके चौथे पृष्ठको तीसरी पंक्तिसे चौदह वीं पंक्ति तक लिखा है कि ( अधिक मासके मानने वालोंको चौमासी क्षमापना के समय 'पंचरहं मासाणं दसरहं पक्खाणं पञ्चासुतरसयराइं दिआणमित्यादि' और सांवत्सरिक क्षमापना के समय 'तेरसयहं मासाणं छवीसरहं पक्खाणं' पाठकी कल्पना करनी पड़ेगी । यदि ऐसा करोगे तो कल्पित आचार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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