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________________ [ ६६४ ] सारोद्वार में १४, तथा तवृत्तिमें १५, श्रीज्योतिषकरगडपयनामें १६, तथा तवृत्तिमें १७, इत्यादि अनेक शास्त्रों में मास वृद्धि होनेसें अभिवर्द्धित संवत्सरके १३ मास, २६ पक्ष सुलासा पूर्वक लिखे हैं और लौकिक पञ्चाङ्गमें भी अधिक मास होनेसे तेरह मास छवीश पक्षका वर्ष लिखा जाता है और सब दुनिया भी धर्मकर्मके व्यवहार में अधिकमासके कारणसें तेरह मास छवीश पक्षको मान्य करती है उसी मुजबही सब जैनी लोग भी वर्तते हैं इसलिये अधिक मासके होनेसे तेरह मास, धीश पक्षका धर्म, पापको गिनतीमें लेकर सतनेही महिनोंके धर्मकायौंकी अनुमोदना और पाप कार्यों की आलोचना लेनी शास्त्रानुसार और युक्तिपूर्वक है क्योंकि अधिक मास होनेसे तेरह मास छवीश पक्षमें धर्म, और अधर्म, करके धर्मकायाकी गिनती नहीं करना और पापकायाकी आलोचना नहीं करना ऐसातो कदापि नहीं हो सकता है। ___और जब श्रीअनन्त तीर्थडर गणधरादि महाराजोंने अधिकमासको गिनतीमें प्रमाण किया है और अभिवर्द्धित संवत्सर तेरह मास छवीश पक्षका कहा हैं तो फिर श्री तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके विरुद्ध अपनी मतिकल्पनासे बारह मास चौवीश पक्ष कहके एक मासके दो पक्षोंको छोड़ देना और श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंका कहा हुवा अभिवर्द्धित संवत्सरके नामका खंडन करना बुद्धिमान कैसे करेंगे अपितु कदापि नहीं। और श्रीअनन्त तीर्थंकर गणधरादि महाराजोंने अधिक मासको गिनतीमें प्रमाण किया है तथापि सातवे महाशयजी उत्सूत्र भाषक होकरके उसीका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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