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________________ [ २७० ] पत्रही सुधार लो जिससे दोन गच्छवालोंके मापसमें संप बना रहेगा और दोनु गच्छके आपसमें संपको नष्ट करनेवाले माप लोगोंकी तरफसें पर्युषणाके व्याख्यानमें तथा छापे द्वारा जो जो कार्य करने में आते हैं उसको भी बंध कर दीजिये जिससे दोनु गच्छवालोंके भापसमें जो संप है उसीसें भी खूब गहरा विशेष संप हो जावेगा; तब जैन शासनके वेरियों का कुछ भी जोर नही हो सकेगा, इतने पर भी आप जैसे शास्त्रानुसार तथा युक्तिपूर्वक सत्य बात को ग्रहण नही करते हुए, अन्यायसे वाद विवाद करके झगड़ेको बढ़ाते रहोंगे जिस पर जो जो जैनशासनके निन्दक शत्रयोंका जोर बढ़नेका कारण होगा तो जिसके दोषाधिकारी खास आप लोगही होवोंगे सो विवेकबुद्धिसैं हृदय में विचार लेना, और आगे श्रीमोहनलालजीके सम्बन्ध में लिखकर तपगच्छकी समाचारीके बाबत जो आपने लिखा है इसका जवाब-अबी नवमें महाशय श्रीमाणकमुनिजी प्रगट हुवे हैं जिसने अपनी अकलका नमुना जैन पत्र में प्रगट करा है उसीका जबाब आगे लिखने में आवेगा वहां श्रीमोहनलालजी सम्बन्धी भी लिखने में आवेगा;____ और छठे महाशयजीने फिर भी अपनी विद्वत्ता की चातुराईका दर्शाव दिखाया है कि-( सूर्पनखा समान जीव उभय पक्षको दुःखदायी होते है तद्वत् बुद्धिसागर खरतरगच्छीय मुनि नाम धारकने भी अपनी मन:काममा पूर्ण न होनेसें रावणके समान ढूंढियोंका सरणा लेकर युद्धारम्भ करना चाहा है) इस लेख पर मेरेको इनताही कहना है कि-जैसे किसी पण्डितको किसी आदमीमें कोई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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