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________________ [ २६ } युक्त श्रीखरतरगच्छ वालोंकी सत्य बातोंको प्रमाण करने अपनी कल्पित बातोंको छोड़ दो और श्रीखरतरगच्छवालों पर मिथ्या आक्षेप जो आपने उत्सूत्र भाषण करके करा है तथा श्रीबुद्धिसागरजी पर जो जो अन्यायसें अनुचित लेख लिखके जैनपत्रमें प्रसिद्ध कराया है जिसकी क्षमा मांगकर उत्सूत्र भाषणका मिथ्या दुष्कृत दो और अपनी मूलको पिछीही जैन पत्र में प्रगट करके सुखशान्तिसें संप करके वत्तों तब दोन गच्छके संप रखने सम्बन्धी आपका लिखना सत्य हो सकेगा परन्तु जब तक उठे महाशयजी आपके बिना विचारके करे हुए अनुचित कार्योंकी आप क्षमा नही मांगोंने और सत्य बातोंका ग्रहण भी नही करते हुए अपनी कल्पित बातोंके स्थापन करनेके लिये जो वार्ताका प्रकरण चलता होवे उसीको छोड़के अन्यायके रस्तेसे अन्यान्य अनुचित बातोंको लिखके विशेष झगड़ा बढ़ाते रहोंगे लब तो दोन गच्छके संप रखने सम्बन्धी भापका लिखना प्रत्यक्ष मायावृत्तिका मिथ्या है और भोले जीवोंको दिखाने मात्रही है अथवा लिखने मात्रही है सो विवेकी सज्जन स्वयं विचार लेवेगे और दोन गच्छके मापसमें वादविवादके कारणसें दबे हुए जैनशासनके वेरियोंका जोर होनेसें मिथ्यात्व बढ़नेका छठे महाशयजी जो आपको भय लगता होवे तो आपनेही प्रथम जैनपत्रमें शास्त्रानुसार चलनेवालोंको मिथ्या दूषण लगाके उत्सूत्र भाषणसे झगड़ा खड़ा करा और पुनःपुनः ( दीर्घकाल चलने रूप ) जैन पत्रमें फैलाया है जिसको पिछीही अपने हाथसें मिथ्या दुष्कृतसे समाके साथ अपनी भूलको जैन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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