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________________ [ २११ ] खातका खुलासा पूछा तब उस परिडतकी उसी बातका खुलासा करनेकी बुद्धि नही होनेसे अपने विद्वत्ताकी इज्जत रखनेके लिये उस बातका सम्बन्धको छोड़के मिष्प्रयोजन की वृथा अन्यान्य बातोंको लाकर अनुचित शब्दोंसे यावत् क्रोधका सरणा ले करके अपनी विद्वत्ताकी बातको जमाता है परन्तु विवेकी विद्वान् पुरुष उस पण्डितका मिथ्या पण्डिताभिमानको और अन्याय के पाखण्डको अच्छी तरह से समझ लेते हैं-तैसेही कठे महाशयजी आपने भी करा अर्थात् आषाढ़ चौमासीसे ५० दिने दूसरे श्रावणमें पर्युषणा करनेवालोंको आज्ञाभङ्गका डूषण लगाने सम्बन्धी श्रीबुद्धिसागरजीनें आपको शास्त्रका प्रमाण पूछा उसीको शास्त्रका प्रमाण बताने की आपकी बुद्धि नही होनेसें और शास्त्रका प्रमाण भी आपको नही मिलनेसें ऊपर कहे सो नामधारी पण्डितवत् आपने भी अपनी विद्वत्ताकी इज्जत रखने के लिये शास्त्रका प्रमाण बतानेके सम्बन्धको छोड़ करके निष्प्रयोजनकी वृथा अन्यान्य बातेंकों लिखकर अनुचित शब्दसे यावत् क्रोधका सरणा लेकर अपनी विद्वत्ताको जमानी चाही परन्तु मिष्पक्षपाती विद्वान् पुरुषोंके आगे आपका मिथ्या पण्डिताभिमानका और अन्याय के पाखरष्ठका दर्शाव अच्छी तरहसें खुल गया हैं कि इठे महाशयजीके पास शास्त्रका प्रमाण न होनेसे श्रीबुद्धिसागरजीको सूर्पनखाकी ओपमा वगैरह प्रत्यक्ष मिथ्या वाक्य लिखके अपने नानकी हासी कराई है क्योंकि श्रीबुद्धिसागरजीनें सूर्प खाकी तरह दोन पक्षको दुःखदाई होने का कोई भी कार्य्य नही करा है तथा न ढूंढियांका सरणा लिया है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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