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________________ [ २ ] अयनत्राशयः-सम्यक्त्व जानवरषयोः कारचं अतएवमानमः ता दंसपिस्सनाणं, नाणेण विणा हुंति परणगुणा । अगुणस्स नत्वि मुक्खो, नत्यि अमुल्लास्स निवाणं ॥९॥ इति तच गुरुबहुमानिन एव भवत्यतो दुःकरकारकोपि तस्मिअवज्ञानविदयात् तदाताकारिच भूयाद्यत उक्त-...... छहहम इसमदुबालसेहि, मासह मास खमणेहिं ॥ .. .. ... आकरंतो गुरुवपणं, अपंत संसारिओ अणिओ ॥१॥इत्यादि यहां आशय एके के सम्यक्त्व ए जान अने चारित्रनु कारणछे जे नाटे आगममा आरीते कहेलंछे-सम्यक्त्व वंतनेल जान होयछे अने ज्ञान विना चारित्रना गुण होता नयी भगुतीने नोक नयी अने मोक्ष वगरनाने निर्वाण मथी, हवे ते सम्यक्स्व तो गुरुनो बहुमान करनारनेज होयरे एपी करीने दुःकरकारी पईने पण तेनी अवा नहीं कर तां तेना मायाकारी ने बाडे कोढुं के यठ, भटम, दशम, द्वादश तथा अगासलमण अने माससमस करतो पको पण जो पुरुनो बम नही माने तो अनंत संसारी पायछे। .... और श्रीरत्रशेखरसूरिजी कृत श्रीमाढविधित्तिका गुजरातीभाषान्तर था:-चीनमलाल शांकलचंद मारफतीयाने श्रीमुंबई में छपवा कर प्रसिद्ध किया है जिसके पृष्ठ, १८८ का लेख नीचे मुजब जानो ;... आशातनाना विषयमा उत्सूत्र [ सूत्रमा कहेला आशययी विरुद्ध ] भाषणकरवायी अरिहंतमी के गुरुनी अव हेलना करवी ए मोटी आशातनाओ अनन्तसंसारनी हेतुळे. जेमके उत्सूत्र प्ररूपणापी सावधाचार्य, मरीची,जमाली,कुल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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