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________________ ! १२ j ओ गूढहिययमाइलो। सढसीलोयससल्थी-तिरिया बंधए जीवो ॥३॥ उम्भग्गदेसणाए-धरणं नासन्ति जिणवरिंदाणं । वावन्नदसणा खलु-महुलभातारिसादटुं ॥४॥ इत्याद्यागम वचनानि श्रुत्वापि स्वाग्रहग्रहग्रस्त चेतसो यद न्यथान्यथा व्याचक्षते विदधति -तन्महासाहसमेवा नर्वापारासार. संसार पारावारोदरविवरमावि भूरिदुःखमाराङ्गीकारादिति । टीकानो अर्थ-बहती पागमा पेसमास्माफ्सनासाहसकरतां पण अधिक आ अतिसाहसछे के सत्रनिरपेक्ष देशना कडवां एटले भयङ्कर फल आपनारीछे एम जाणनारा होइने पण सत्रबाह्य एटले जिनागममा नही कहेल अर्थमां एटले वस्तु विचारमा निर्देश एटले निश्चय आपीदेछे-एटलेशुंकयु तेकहेछे-मरीचि एकदुर्भाषितथी दुःखनादरियामां पही क्रोडाक्रोडसागरोपम भम्यो । १। उत्सत्र आचरतां जीव चौकणा कर्म बांधे संसारवधारेले अने मायामृषा करेछे । २। उन्मार्गनी देशना करनार मार्गनो नाशकरनार गूढहृदयथी मायावी शठ अने सशल्य जीव तिर्यंचनो आयुष्य बांधेछे।३। जेओ उन्मार्गनी देशनाथी जिनेश्वरना चारित्रनो नाशकरेछे तेवा दर्शनभ्रष्ट लोकोने जोवा पणसारा नहीं।४। आवगेरे आगमना वचनो सांभलीने पण पोतामा आग्रहमां ग्रस्त बनी जे कांड आईं अवलु बोलेछे तथा करेछे ते महा साहसजछे केमके एतो अपार भने असार संसाररूप दरि याना पेटमां धनार अनेक दुःखमुंभार एकदम अङ्गीकार करवा तुल्य छ । .. . और फिर भी तीसरा भाग पृष्ठ २४२ का पाठ भाषा सहित नीचे मुजब जानो यथा- . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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