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________________ C ¿ २५१ ] ये पापकारिणो नराः पापं असत् परूपणं कुर्वन्तीत्येवं शीलाः पापकारिणो ये नराः भवन्ति ते नराः घोरे भीषणे ( भयङ्करे ) नरके पतन्ति च पुन: धर्म सत् परूपणरूप चरित्राराध्यदिव्यं दिवः सम्बम्धीनों उत्तमां गतिं गच्छन्ति इत्यादि ॥ इस पाठ में उत्सूत्र परूपणा करने वालेकों भयङ्कर नरक और सत्य परूपणा करने वालेकों देव लोगकी गति कही हैं । और श्रीशान्तिसूरिजीकृत श्रीधर्मरत्न प्रकरण मूल तथा तद्वत्ति श्रीदेवेन्द्रसूरिजी कृत भाषा सहित श्री पालीताणा से श्रीजैनधर्म विद्याप्रसारकवर्गकी तरफ से. छपके प्रसिद्ध हुवा हैं जिसके तीसरे भागके पृष्ठ ८२ । ८३ । ८४ का पाठ गुजराती भाषा सहित मीचे मुजब जानो ;यथा -- अइ साहस मेयं जं, उस्सुत्त परूवणा कडुविवागा ॥ जाणतेहिवि दिज्जर, नि सो सुप्रये ॥१०९॥ मूडनो अर्थं तत्सूत्रपरूपया कटवां फल आपनारी के एवं जाणतांछतां पण जेओ. सूत्रबाह्य अर्थमां निश्चयआपी. देले ते अति साहसले ॥ १०९ ॥ टीका- - ज्वलज्ज्वालानल प्रवेशकारिनर साहसादप्यधिकमतिसाहसमेतद्वर्त्तते यदुत्सूत्रपरूपणा सूत्रनिरपेक्ष देशना कंटुविपाका दारुणफला जानानैरवबुध्यमानैरपि दीयते वितोर्य्यते निर्देश्या निश्चयः सूत्रबाह्य जिनेन्द्रागमानुक्तेऽर्थे वस्तु विचारे किमुक्तं भवति - दुभासिएण इक्केण, मरीईदुक्खसागरं पत्तो अमिओ कोडा कोडिं, सागर सिरिनामधिज्जाणं ॥१॥ उस्सुत्तमाचरन्तो-बंधकम्म सुचिक्कणं जीवो । संसारच पवढइ, मायामोसं च कुवदय ॥ २ ॥ उम्मग्गदेमओ मग्ग-नाम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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