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________________ [ २१७ ] अब आगे पांचवें महाशय न्यायरत्नजी श्रीशान्तिविजयजीने मानवधर्मसंहिता नामा पुस्तक में जो पर्युषणा सम्बन्धी लेख अधिक मासको निषेध करनेके लिये लिखा है उसकी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हु जिसमें प्रथमतो मानवधर्मसंहिता पुस्तकके पृष्ठ ८०० की पंक्ति १७ वीं से पृष्ठ ८०९ की पंक्ति २१॥ तक जैसा न्यायरत्नजीका लेख है वैसाही नीचे मुजब जानो ;- दो श्रावण होतो भी भादवेमें ही पर्युषणापर्व करना चाहिये, अगर कहा जाय कि-आषाढ़सुदी १४ चतुर्दशीसे ५० रोज लेना कहा यह कैसे सबुत रहेगा ? जबाब-कल्प. सूत्रकी टीकामें पाठ है कि-अधिकमास कालपुरुषकी चूलिका यानी चोटी है, जैसे किसी पुरुषका शरीर उचाईमें नापा जाय तो चोटीकी लंबाई नापी नही जाती, इसी तरह कालपुरुषकी चोटी जो अधिकमास कहा सो गिनतीमें नहीं लिया जाता, कल्पसूत्र की टीकाका पाठ कालचूलेत्यविवक्षणादिनानां पञ्चाशदेव,-अगर लिया जाता हो तो पयुषणा पर्व-दूसरे वर्ष श्रावणमें और इस तरह अधिक महिनोंक हिसाबसैं हमेशां उक्त पर्व फिरते हुवे चले जायगें, जैसे मुसल्मानोंके ताजिये-हर अधिक मासमें बदलते रहते हैं, दूसरा यह भी दूषण आयगा कि-वर्षभरमें जो तीन चातुमासिक प्रतिक्रमण किये जाते हैं उनमें पञ्चमासिक प्रतिक्रमणपाठ बोलना पड़ेगा, शीतकालमें और उष्णकालमें तो अधिक महिना गिनतीमें नही लाना और चौमासेमें गिनतीमें लाकर श्रावणमें पर्युषणा करना किस न्यायकी बात हुई ? अगर कहा जाय कि-पचास दिनकी गिनती २८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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