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________________ [ २९८ ] लिइ जाती है तो पिछले 90 दिनकी जगह १०० दिन हो जायगें, उधर दोष आयगा, संवत्सरीके पीछे 90 दिन शेष रखना - यह बात समवायाङ्गसूत्रमें लिखी है - उसका पाठ- वासाणं सवीसहराए मासे वइक ते सत्तरिराइदिएहिं सेसेहिं, इसलिये वही प्रमाण वाक्य रहेगा कि -- अधिकमास कालपुरुषकी चोटी होनेसें गिनती में नही लेना, अधिक महिनेकों गिनती में लेनेसें तीसरा यह भी दोष आयगा कि - चोईस तीर्थङ्करों के कल्याणिक जो जिस जिस महिनेकी तिथिमें आते हैं गिनतीमें वे भी बढ़ जायगें, फिर क्या ! तीर्थङ्करोंके कल्याणिक १२० से भी ज्यादे गिनना होगा ? कभी नही, इस हेतु से भी अधिकमास नही गिना जाता अधिक महिनेके कारणसे कभी दो भादवे हो तो दूसरे भादवेमें पर्युषणा करना चाहिये जैसे दो आषाढमहिने होते हैं तब भी दूसरे आषाढ़ में चातुर्मासिककृत्य किये जाते हैं वैसे पर्युषणा भी दूसरे भादवेमें करना न्याययुक्त है ।] अब न्यायरत्नजीके उपरका लेखकी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हु जिसमें प्रथमतो ( दो श्रावण हो तो भी भाद्रवें में ही पर्युषणापर्व करना चाहिये) यह लिखना न्यायरत्नजीका शास्त्रों में बिरुद्ध है क्योंकि खास न्यायरत्नजीकेही परमपूज्य श्रीतपगच्छके पूर्वाचार्थ्यांने दो श्रावण होने से दूसरे श्रावण में पर्युषणापर्व करनेका कहा है जिसका अधिकार उपर में अनेक जगह और खास करके चारों महाशयों के नामको समीक्षा में अच्छी तरहसें छपगया है इसलिये दो श्रावण होते भी भाद्रपदमें अपने पूर्वजोंके विरुद्धार्थमें पर्युबणापर्व स्थापन करना न्यायरत्नजीको उचित नही है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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