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________________ [ २१३ ] शास्त्रोंमें कहा है और प्राचीन कालमें भी मासवृद्धि होने सें श्रावण मास प्रतिबद्ध पर्युषणा भी इसलिये मासवृद्धि दो श्रावण होते भी भाद्रव मास प्रतिबद्ध पर्युषणा ठहराना शास्त्रविरुद्ध है और दूसरे श्रावणमें पर्युषणा करने वालोंको सिद्धान्तसें और लौकिक रीतिसे विरुद्ध ठहराना सो भी प्रत्यक्ष मिथ्या भाषण कारक हैं इसका उपर में अनेक जगह विस्तारसें छपगया है और आगे विशेष विस्तार सातमें महाशय श्रीधर्मविजयजीके नामकी समीक्षामें करनेमें आवेगा ; और आगे फिर भी न्यायांभोनिधिजीने पर्युषणा सम्बन्धी अपना लेख पूर्ण करते अन्त में पृष्ठ ९३ पंक्ति१३ से पंक्ति १९ तक ऐसे लिखा है कि [ पूर्वपक्ष पृष्ठ १५७ में लिखे हुए पाठका कुछ भी समाधान न किया— उत्तर - हे परीक्षक अधिक मासको जब कालचूला मान लिया तो शास्त्रके लिखे हुए ५० दिन भी सिद्ध होगये और ७० दिन भी सिद्ध होगये तो फिर काहे को अपने अपने मासमें नियत धर्मकार्य्य छोड़के और और कल्पना करके आग्रह करना चाहिये ] यह उपरका लेख न्यायांभोनिधि जीका शास्त्रोंके विरुद्ध और मायावृत्तिका भोले जीवोंकों भ्रमानेके वास्ते है क्योंकि प्रथम तो शुद्धसमाचारीके पृष्ठ १५७ में श्री कल्पसूत्रका मूल (सबीसह राइमासे इत्यादि ) पाठ लिखा है और दूसरा श्रीबृहत्कल्प चूर्णिका पाठसें प्राचीनकालकी अपेक्षायें पांच पांच दिनकी वृद्धि करते दशवें पञ्चक में पचास दिने पर्युषणा दिखाई है और उसी श्रीह Perest पूर्णिमें अधिक मासको मिश्चयके साथ अवश्य विनतीमें लेना कहा है जिसका पाठ आगे उठे महाशब Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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