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________________ [ २९४ ] श्रीवाभाविजयजीके नामकी समीक्षामें लिखनेमें आवेगा, इसलिये एड समाचारीकी पुस्तकके पृष्ठ १५७ का पाठ सम्बन्धी पूर्वपक्ष उठाकर उप्तीका उत्तरमें अधिक मासकी गिनती निषेध करना सो तो प्रत्यक्ष न्यायाम्भोनिधिजीका शास्त्र विरुद्ध उत्सूत्र भाषण रूप है ;___और दूसरा यह भी सुन लीजीये कि-श्रीनिशीथ चूर्णि कार श्रीजिनदास महत्तराचार्यजी पूर्वधर महाराजने और श्रीदशवैकालिक सूत्रके प्रथम चूलिकाकी वृहद्वृत्तिकार सुप्रसिद्ध श्रीमान् हरिभद्र सूरिजी महाराजने अधिकमासको कालचूलाको उत्तम ओपमा गिनती करने योग्य लिखी है तथापि इन महाराजके विरुद्धार्थ में न्यायाम्भोनिधिजी इतने विद्वान् होते भी अधिक मासको कालचूला मानते भी निषेध करते है सो बड़ी ही विचारने योग्य आश्चर्य की बात है; और दो श्रावण होनेसे भाद्रपदतक ८० दिन होते है तथा दो आश्विन होनेसे कार्तिक तक १०० दिन होते है तथापि ८० दिनके ५० दिन और १०० दिनके 90 दिन न्यायाम्भोनिधिजीने अपनी कल्पनासे कालचूलाके बहाने बनाये सो कदापि नही बन सकते है इसका विस्तार तीनों महाशयों की और खास न्यायाम्भोनिधिजीकी भी समीक्षा में अच्छी तरहसे उपरमें छप गया है सो पढ़के सर्वनिर्णय कर लेना:-और दो श्रावण मास होनेसें दूसरे श्रावण मांस प्रतिबद्ध पर्युषणा पर्व है इसलिये दो श्रावण होते भी भाद्रव मासकी भ्रान्ति करना शास्त्र विरुद्ध है और अब न्यायाम्भोनिधिजीके नाम की पर्युषणा सम्बन्धी समीक्षाके अन्त में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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