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________________ [ १९७ ] जो ऊपरमें श्लोक लिखके पर्यषणा पर्वका निषेध किया है उस सम्बन्धी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हुं, जिसमें प्रथमतो शुद्धसमाचारीकारने इसीही नारचन्द्र के दूसरे प्रकरणका जो रोक लिखाथा उसीको भावार्थ सहित में अपरमें लिस आया हुं-जिसमें खुलासे लिखा है कि तेरहमास तक सिंहस्यमें और पौष तथा चैत्र ऐसे मलमासमें मुहूर्त के निमित्तिक शुभकार्य नही होते हैं परन्तु बिना मुहूर्त का धर्म कार्य करने में हरजा नही क्योंकि तेरहमासका सिंहस्थ में पर्युषणादि धर्मकार्य तो अवश्य ही करने में आते है और पौषमासमें श्रीपार्श्वनाथस्वामिजीका जन्म और दीक्षा कस्वाणकके धर्मकार्य और चैत्रमासमें श्रीआदिजिनेश्वर भगवान्का जन्म और दीक्षा कल्याणकके धर्मकार्य करने में आते हैं और चैत्रमासमें. ओलियांकी भी तपश्चर्या वगैरह करने में आती है और खास अधिकमासमें भी पाक्षिकादि धर्मकार्य करने में आता है इस लिये मुहूर्त के निमित्तिक कार्य अधिकमासमें नही हो सकते है परन्तु धर्मकार्य तो बिवा मुहूर्तका होनेसें अवश्यही करने में आता है यह. तात्पर्य शुद्ध समाचारी कारका सत्यथा तथापि न्यायाम्भोनिधिजीने (पष्ठ १५९ पंक्ति में नारचन्द्र ज्योतिष ग्रन्यका प्रमाल दिया है सो तो हीरीके स्थानमें बीरीका विवाह कर दिया है ) ऐसा उपहासका बाक्य लिखके उपरोक्त सत्यबातका विषेध. करदिया और फिर उसी स्थानका 'हरिशयने, इत्यादि श्लोक लिखके हरिशयने श्रीकृष्णजीका शयन ( सोना ) जो चौमासामें और अधिक मासमें शुभकार्य का न. होना दिखाकर पर्यु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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