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________________ [ १९८ ] या पर्वका भी नही होनेका उत्सूत्र भावणरूप दिखाते कुछ भी विचार न किया क्योंकि चौमासेमें मुहूर्त निमित्तिक शुभकार्थ्य नही होते है परन्तु बिना मुहूर्तका श्रीपर्युषणा पर्वतो खासकरके श्री अनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने वर्षा ऋतु में करनेका कहा है जिसका किञ्चिन्मात्र भी न्यायाम्भोनिधिजी विचार न करते श्री अनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके विरुद्धार्थमें और विद्वान् पुरुषोंके आगे अपने नामकी हासी करानेका कारणरूप हरिशयन का चौमासमें और अधिक मासमें शुभकार्य का न होने का दिखाकर पर्युषणापर्व न होनेका भोले जीवोंको दिखाया । हा अतीव खेदः इस उपरकी बातको पाठकवर्गको तथा न्यायाम्भोनिधिजीके परिवारवालोंकों और उन्होंके पक्षधारियोकों (सत्यग्राही हो कर ) दीर्घदृष्टिसें बिचारनी चाहिये; दूसरा और भी सुनो-जो न्यायांभोनिधिजीके तथा उन्होंके परिवारवालोंके दिलमें ऐसाही होगा कि मुहूर्त्त के निमित्तका शुभकार्य्य न होवे वहां बिना मुहूर्त्तका धर्मकार्य्यं भी नही होना चाहिये तब तो उन्होंके आत्माका सुधारा धर्मकायोंके बिना होनाही मुश्किल होगा क्योंकि ज्योतिषशास्त्रोंके आरम्भसिद्धि ग्रन्थ में १, तथा लघु वृत्ति में २, और वृहद्वृत्ति में ३, जन्मपत्री पद्धति में ४, नारचन्द्रप्रकरण में ५, तथा तहिष्षण में ६, लग्नशुद्धिग्रन्थ में 9, तत् वृत्ति में ८, मुहूर्तचिन्तामणिमें ९, बृहत् मुहूर्त्तसिन्धु में १० दूसरी मुहूर्त्त चिन्तामणिमें १९, तथा पीयूषधारा वृत्तिमें १२, मुहूर्त माडमे १३, विवाह वृन्दावन में १४, प्रथम और दूसरा विवाहपडल ग्रन्थ में १५-१६, चार प्रकरणका नारचन्द्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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