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________________ [ १२६ ] हैं इसलिये श्रीसमवायांगजी सत्रका इसी ही पाठको न माननेवाले तथा उत्थापक तीनों महाशय और इन्होंके पक्षधारी प्रत्यक्ष बनते है । तथापि निर्दूषण बनने के लिये अधिक मासकी गिमती निषेध करके, ८० दिनके बदले ५० दिन मानकर निर्दूषण बनते है। और पर्युषणाके पीछाड़ी दो आश्विनमास होनेसे कार्तिक तक १०० दिन होते हैं। तथापि इसको निषेध करने के लिये अधिकमासकी गिनती निषेध करके १०० दिनके बदले १० दिन मानकर अपनी मनो. कल्पनासै निर्दूषण बनते है और श्रीसमवायांगजी सूत्रका पाठके आराधक बनते है । परन्तु शास्त्रार्थको आस्मार्थी पुरुष निर्पक्षपातसे देखके विचार करते हैं तबतो दोनों अधिक मासका गिनतीमें निषेध करनेका तीनों महाशयोंका और इन्होंके पक्षधारिओंका महान् अनर्थ देखके बड़े आश्चर्य सहित खेदको प्राप्त होते हैं क्योंकि तीनो महाशय और इन्होंके पक्षधारीअधिकमासकी गिनती निषेध करके श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रका पाठके आराधक बनते है परन्तु खास इसीही श्रीसमवायांगजी मूलसूत्र में अनेक जगह खुलसा पूर्वक अधिकमासको प्रमाणकिया हैं जिसमें का ६१ और ६२ वा श्रीसमवायांगका पाठ भी वृत्ति भाषा सहित इसी ही पुस्तक ३९ । ४० । ४९ पृष्ठ में छप गया है जिसमें पांच संवत्सरोंका एक युगमें दोनु अधिकमास को दिनोमें पक्षोमें मासोमें वर्षो में खुलासा पूर्वक गिनके प्रमाण दिखायाहै इस लिये अधिकमासकी गिनतीका निषेध कदापि नही हो शकता है तथापि अधिकमासकी गिनती निषेध करके जो श्रीसमवायांगनी सूत्रका पाठके आराधक बनते है सो आराधकके बदले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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