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________________ [ १२७ ] उलटे विराधक बनते हैं और मासवृद्धि दो श्रावणादि होते भी भाद्रपदमें ८० दिने पर्युषणा करणी और वर्तमानिक पाँचमास के १५०. दिनका अभिवर्द्धित चौमासा होते भी पर्युषणाके पीलाही ७० दिन रखनेका आग्रहसे हठकरना, और पर्युषणाके पीछाड़ी मास वृद्धि होनेसे १०० दिन मानने वालोंको दूषित ठहराना। और अधिक मासकी गिनती निषेध करके भी आप निर्दूषण बनना। ऐसा जो जो महाशय वर्तमानकालमें मानते है श्रद्धारखते है तथा परूपते भी है-सो निःकेवल अनेक शास्त्रों के विरुद्धार्थ में उत्सूत्र भाषण करते दृष्टिरागी भोलेजीवों को जिनाज्ञा विरुद्ध कदाग्रहकी भ्रमजालमें गेरके अपनी आत्माको 'संसारगामी करते है इसलिये अधिकमासके निषेध करने वाले कदापि निर्दूषण नही बनशकते है, और अधिकमासका निषेध करनेकी ऐसी बाललीला मिथ्यात्व रूप मन कल्पना की गपोल खीचड़ी, क्या, अनन्तगुणी अविसंवादी सर्वज्ञ महाराज अतिउत्तमोत्तम श्रीतीर्थङ्कर केवल ज्ञानी भगवान् उपदेशित शास्त्रों में कदापि चल शकती है अपितु सर्वथा प्रकारसे नही, नही, नही, क्योंकि अधिकमास को श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि महाराज खुलासा पूर्वक गिनती में प्रमाण करते हैं। इसलिये तीनों महाशय तथा इन्होंके पक्षधारी वर्तमानिक महाशयोंकी अधिक मासके निषेध करनेकी सर्व कल्पना संसार वृद्धि कारक मिथ्यास्वकी हेतु हैं इसलिये वर्तमानिक श्रीतपगच्छादि वाले आत्मार्थी मोक्षाभिलाषि निर्पक्षपाती सज्जन पुरुषोंसे मेरा यही कहना है कि-हे धर्म बन्धवों तुमको संसार वृद्धिका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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