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________________ [ ९९३ ] सोही कार्य्य प्राचीन कालमें अभिवर्द्धित संवत्सर में वीथ दिने करमेमे आतेथे यह बात उपरोक्त अनेक शास्त्रीके न्यायानुसार सिद्ध होगई तथा और आगे भी लिखने में आवेगा इसलिये इन तीनो महाशयोंका ( अभिवर्द्धित संवत्सर में श्रावण शुक्ल पञ्चमीका पर्युषणा करनेका कोई भी शास्त्र में नहीं दिखता है ) ऐसा लिखना सर्वथा अप्रमाण हो गया सो आत्मार्थी निष्पक्षपाती पाठकवर्ग विचार लेना और अभिवर्द्धित संवत्सरमें आषाढ़ चौमासीसे वीश दिने निश्चय पर्युषणा वार्षिक कृत्योंसे भी करनेमें आती थो तथापि इन तीनो महाशयोंने पक्षपातके जोरसे उसको निषेध करनेके लिये गृहस्थी लोगों के जानी हुई पर्युषणा दो प्रकारकी ठहराकर अभिवर्द्धितमें बोशदिनकी पर्युषणाको केवल गृहस्थी लोगोंके जानी हुई कहने मात्रही ठहराते है सो भी मिथ्या है क्योंकि अभिवर्द्धित संवत्सर में वीशदिने गृहस्थी लोगोंको कह देवे कि हम यहाँ वर्षाकालमें ठहरे हैं ऐसा कहकर फिर एक मासके बाद भाद्रपद में वार्षिक कृत्य करे इस तरहका कोई भी शास्त्र में नही लिखा है इसलिये इन तीनों महाशयों का कहना शास्त्रोंके प्रमाण बिनाका होनेसे प्रत्यक्ष उत्सूत्रभाषणरूप है और आषाढ़ पूर्णिमासे योग्यक्षेत्राभावादि कारणे पाँच पाँच दिनको वृद्धि करते दशवे पंचकमें याने पचासदिने भाद्रपद शुक्लपञ्चमीको पर्युषणा करे इस वाक्यको देखकेजो तीनो महाशय अभिवर्द्धित संवत्सर में वोशदिनकी पर्युषणाको गृहस्थी लोगोंके जानी हुई सिर्फ़ कहने १५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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