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________________ [ ११२ ] . दिया है जिससे ज्ञात पर्युषणा आषाढ़ चौमासीसे वीशे तथा पचाशे करे और सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि अन्य अमुकदिने करे ऐसा कदापि नही बनता है किन्तु जहाँ ज्ञात पर्युषणा वहाँ ही वार्षिक कृत्य बनते हैं इसलिये अभिवर्द्धित संवत्सरमे आषाढ़ चौमासीसे लेकर वीशदिने श्रावण शुक्लपञ्चमीको और चंद्र संवत्सरमें पचासदिने भाद्रपद शुक्लपञ्चमीको सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि वार्षिक कृत्य अवश्यमेव निश्चय करने में आते थे यह निःसन्देहकी बात हैं तथा और भी जो पहिले तीनो महाशयोंने लिखा है ( अभिवर्द्धिते वर्षे चतुर्मास्किदिनादारभ्यः विंशत्यादिनैः वयमत्र स्थिताः स्म इति पृच्छतां गृहस्थानां पुरो वदन्ति) और, इसका मतलब ऐसे लाये है. कि—अभिवर्द्धित. संवत्सरमें आषाढ़चतुर्मासीसे लेकर वीशदिने याने श्रावण शुक्लपञ्चमी सेही कोई गृहस्थी लोग पूछे तो कह देवे कि वर्षाकालमें हम यहाँ ठहरे हैं। वर्षाकालमें एक स्थानमें सर्वथा निवास करना सो पर्युषणा हैं इस मतलबसे भी आषाढ़ चौमासीसे वीशदिने गृहस्थी लोगोंकी जानी हुई पर्युषणा करे सो यावत् १०० दिन कार्तिक पूर्णिमा तक उसी क्षेत्रमें ठहरे॥ ___ उपरोक्त तीनो महाशयोंके लिखे वाक्यार्थको भी विवेकी बुद्धिजन पुरुष निष्पक्षपातसे विचारेंगे तो प्रत्यक्ष मालुम हो जावेंगा कि प्राचीन कालमें अभिवर्द्धित संवत्सरमें वीश दिने श्रावण शुक्लपञ्चमीसे गृहस्थी लोगोंकी जानी हुई पयु. षणा करनेमें आती थी क्योंकि जिस जिस शास्त्रानुसार चंद्र संवत्सरमें पचासदिने जो जो कार्य करने में आते हैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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