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________________ नवमः ९] भापाटीकासमेतम् । (५१) शुभाशुभ, अष्टमस्थानसे वैधव्य और पंचमभावसे पुत्रसुखासुख विचारना, अन्य भावविचार पुरुषोंके उक्तप्रकारसे जानने ॥३॥ सुभगा दुर्भगायोगः। सौम्याभ्यां प्रवरा शुभत्रययुते जाया भोदूपतेः सौम्यैकेन पतिप्रिया मदनभे दृष्टे युते जन्मनि ॥ पापैकेन पुनर्विलोलनयना पापद्वयेनाधमा पापानां त्रितयेन सा परकुलं हत्वा पतिं गच्छति ॥४॥ जन्मसमयमें तीन शुभग्रहोंसे सप्तम भावयुक्त वा दृष्ट हो तो वह स्त्री राजरानी होवै, दो शुभग्रहोंसे ऐश्वर्यवती एकसे पतिकी प्रिया होवै, तथा सप्तममें एक पापग्रह हो वा एक पाप ग्रह देखे तो (चंचलनेत्रा), परपुरुषदृष्टिवाली, दो पापोंसे अधर्मकर्म करनेवाली, तीनसे निज पतिको मारकर पराये घरमें अन्यपतिके पास जानेवाली होवे ॥४॥ पुंश्चलीत्वादियोगः। | जनुकाले यस्या मदनभवने वासरमणौ पतिं त्यक्त्वा नूनं कुपितहृदया भूमितनये ॥ अवश्यं वैधव्यं सपदि कमलाक्षी रविसुते जरां पापैदृष्टे निजपतिविरोधं ब्रजति वा ॥५॥ जिस सीके जन्ममें सूर्य सप्तमभावमें हो वह पतिको त्याग करे वा पति इसे त्याग करे तथा इसके हृदयमें नित्य क्रोध बना रहे। यदि मंगल सप्तम हो तो अवश्य विधवा होवे, शनि सप्तम हो तो (कमलनेत्रा ) सुरूपाभी हो तथापि अनव्याहेमें वृद्धत्व पावे अर्थात् बड़ी उमरमें विवाह होवे जो पापग्रहोंकी दृष्टि सप्तम भावपर हो तो पतिके साथ विरोध रक्खे ॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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