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________________ भावकुतूहलम्- स्त्रिीजातकम् पतिव्रतायोगः। ' यस्याः शशाङ्के जनिलग्नभे वा रामशंगे सा प्रकृतिः स्थिरा स्यात् ॥ शुभेक्षिते रूपवती गुणज्ञा पतिक्रिया चारुविभूषणाढ्या ॥६॥ जिसके जन्मसमयमें चंद्रमा लपमें अथवा तीसरेभावमें हो तो उसकी प्रकृति सर्वदा स्थिर रहै उसे शुभग्रहभी देखें तो रूपवती गुणवती पतिसेवामें चतुर और रमणीय भूषणोंसे युक्त होवै ॥६॥ - यदाङ्गचन्द्रावसमे भवेतां तदा नराकारसमा कुरूपा ॥ पापेक्षितौ पापयुतौ विशेषाद्गदातुरा रूपगुणैविहीना ॥७॥ यदि लग्न एवं चंद्रमा विषमराशि विषमनवांशकोंमें हो तो स्त्री पुरुषकी (आकृति) स्वरूप यद्वा पुरुषोंके तुल्य कृत्य करनेवाली होवै, कुरूपाभी होवै, यदि उक्त लग्न चंद्रमा पापयुक्त दृष्ट भी हों तो विशेषतः रोगसे आतुर रहै सुगुणोंसे हीन रहे॥ ७ ॥ . स्त्रीणां राजयोगाः। जनुःकाले यस्या मदनसदने दानवगुरौ शुभाभ्यामाकान्ते गतवति तदा सा विधुमुखी॥ गजेन्द्राणां मुक्ताफलविमलमालावृतकुचा प्रिया पत्युनित्यं प्रभवति शचीवत्क्षितितले॥८॥ जिसके जन्मसमयमें सप्तमस्थानमें शुक्र दो शुभग्रहोंसे युक्त हो उसके चन्द्रमुखी स्तनों के ऊपर गजमोतियोंकी माला विराजमान रहे अर्थात् ऐश्वर्यसें परिपूर्ण रहे तथा पतिकी प्णरी नित्य रहे और इंद्राणीके समान ऐश्वर्यवती होवे ॥ ८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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