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________________ (५० ) भाषकुतूहलम् - [ स्त्रीजातकम् - उक्तरक्षण प्रगट हुये में राजवंशीके हों तो पूर्ण राज्यफल देते हैं अन्यको धन मान आदि थोडा ही फल देते हैं ॥ १२ ॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकार्या सामुद्रिक लक्षणाध्यायः ॥ ८ ॥ नवमोऽध्यायः ॥ स्त्रीजातकम् । शुभाशुभं पूर्वजनेर्विपाकात्सीमन्तिनीनामपि तत्फलं हि || विवाहकालात्परतः प्रवीणैरसम्भवात्तत्पतिषु प्रकल्प्यम् ॥ १ ॥ अब स्त्रीजातक कहते हैं- जो कुछ स्त्रियोंके पूर्वजन्मार्जित कर्मों से शुभ वा अशुभ होते हैं वह विवाहसे ऊपर जो फल स्त्रियोंको होने असंभव हैं वे उसके भर्त्ताको चतुर ज्योतिषी कहे जां स्त्रियोंको संभव हैं वे उनको कहने. तथा समस्त फल देश, जाति, कुल विचारके संभवासंभव जानके युक्तिसे कहना ॥ १ ॥ अतीव सारं फलमङ्गनानामुदीरितं शौनकनारदाद्यैः ॥ व्यक्तं यथा लग्ननिशाकराभ्यां मया तथैव प्रतिपाद्यते तत् ॥ २ ॥ ग्रंथकर्त्ता कहता है कि, स्त्रियोंके लग्न तथा चंद्रमासे शौनक, नारद आदि आचार्योंने अतिसारतर जो फल कहे हैं उन्हीको मैं यहाँ प्रगट प्रतिपादन करता हूँ ॥ २ ॥ सौभाग्यादिस्थान संज्ञा । सौभाग्यं सप्तमस्थाने शरीरं लग्नचन्द्रयोः ॥ वैधव्यं निधनस्थाने पुत्रे पुत्रं विचिन्तयेत् ॥ ३ ॥ स्त्रियोंके सप्तमस्थान से सौभाग्य, लग्न तथा चंद्रमासे शरीर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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