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________________ (४६) भावकुतूहलम्-. । राजयोग: राजयोगभङ्गविचारः। यदि भवन्ति नवायदशाधिपा जनुषि नीचगता विकला भृशम् ॥ नृपतियोगजमङ्गभूतां फलं परिणमत्यपि निष्फलतामिह ॥ १२ ॥ यदि जन्ममें ९।१०।११ भावोंके स्वामी नीचराशियोंमें तथा अत्यन्त करके अस्तंगत पीडित आदिभी हों तो मनुष्यों के राजयोग भी हो तो भी उसका फल निष्फल होकर दरिदीही होवे५२॥ रिपुमन्दिरगैरेव वैरिभावगतैरपि ॥ राजयोगा विनश्यन्ति दिवाकरकरोपगैः ॥ ५३ ॥ यदि राजयोगकर्ता ग्रह शत्रुराशियोंमें वा छठे भावमें यद्वा शत्रु वर्गमें हो तथा अस्तंगत हो तो राजयोग नष्ट हो जाता है।५३ ॥ भवति वीक्षणवर्जितमङ्गिनां जननलममिहांबरगामिनाम ॥ जननभं च नृपालभवोनरोजगति यातितरामतिरकताम् ॥ ५४॥ यदि मनुष्योंके जन्मलनको कोई ग्रह न देखे तथा चन्द्रराशिको भी कोई ग्रह न देखे तो राजयोगवाला मनुष्य राजपुत्र भी हो तो भी (रंक) दरिद्री ही होता है ॥५४॥ भद्रायां व्यतिपाते वा तथा केतूदये जनिः॥ | यस्य तस्य विनश्यन्ति राजयोगफलान्यपि५५ जिसका जन्म भद्रा व्यतिपातमें तथा (केतु) पुच्छताराके उदयमें हो तो उसके राजयोगोंके फलभी नष्ट होता है ॥ ५५ ॥ परमनीचलवे यदि चन्द्रमा भवति जन्मनि तस्य विशेषतः॥नृपतियोगफलं विफलं ततः कलयतीति वदन्ति मुनीश्वराः॥५६॥ इति देवज्ञजीवनाथविरचिते भावकुतुहले राजयोमाध्यायः ॥७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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