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________________ सप्तमः ७] भापाटीकासमेतम् । ( ४५ ) कुम्भका सूर्य, मेषका शनि वृश्चिकका चन्द्रमा, कन्याका शुक्र, अपने नीचमें हो तो फणिसंज्ञकयोग होता है इसमें जिसका जन्म हो वह मनुष्य श्रेष्ठ भी ( विकल ) कलाहीन होता है ॥४८॥ काकयोगः । अजगते भृगुजे रविजे जनुर्वृषभगे दिनपेऽनिमिषे विधौ ॥ अवनिजे यदि कर्कटगेहगे भवति काकभवो विभवोनितः ॥ ४९ ॥ जिसके जन्ममें मेषका शुक्र, मेषका शनि, वृषका सूर्य, मीनका चन्द्रमा, कर्कका मङ्गल हो तो यह काकयोग ऐश्वर्यहीन ( दरिद्री ) करता है ॥ ४९ ॥ दरिद्रयोगः । विधुयुतो घटभे दिवसाधिपो गुरुमहीजकवीनसुताः पुनः ॥ यदि भवन्ति च नीचगता जनुर्वजति राजसुतोऽपि दरिद्रताम् ॥ ५० ॥ चन्द्रमासहित सूर्य कुम्भका और बृहस्पति, मङ्गल, शुक्र, शनि, अपने अपने नीचराशियों में हो ऐसे योगमें जिसका जन्म हो वह राजा भी हो तो भी दरिद्रीड़ी रहै ॥ ५० ॥ हुताशनयोगः । शनिमही जनिशाकरचन्द्रजा यदि जनुः किल नीचमुपाश्रिताः॥ मकरभे भृगुजोऽपि हुताशनः परमतापकरो न करोति शम् ॥ ५१ ॥ यदि जन्म में शनि, मंगल, चन्द्रमा, बुध अपने अपने नीचराशि योंमें हों तथा शुक्र भी मकरका हो तो यह हुताशनयोग होता है, इसमें मनुष्य परमसंताप करनेवाला होता है, शुभफल कदापि नहीं५१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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