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________________ अष्टमः ८] भाषाटीकासमेतम् । जिसके जन्ममें चंद्रमा परम नीचांशकमें हो उसके विशेषतासे राजयोगोंके फल निष्फल होजाते हैं यह मुनीश्वर कहते हैं॥५६॥ इति भावकुतूहले माहौधरीभाषाटीकायां राजयोग तद्भगदरिद्रयोगाध्यायः॥७॥ - अष्टमोध्यायः ॥ राजयोगचिह्नम् । जनने प्रबलो यस्य राजयोगो भवेद्यदि ॥ करे वा चरणेऽवश्यं राजचिह्न प्रजायते ॥ ३ ॥ जिस मनुष्यके जन्ममें राजयोग प्रबल होता है उसके हाथ वा पैरमें अवश्यमेव राजचिह्न होताहै ॥ १॥ अनामामूलगा रेखा सैव पुण्यभिधा मता ॥ मध्यमाङलिमारभ्य मणिबधान्तमागता ॥२॥ सोर्ध्वरेखा विशेषेण राज्यलाभकरी भवेत् ॥ खण्डिता दुष्टफलदा क्षीणा क्षीणफलप्रदा ॥ ३॥ अनामिकाके मूलमें सीधी रेखा पुण्य देनेवाली होती है खंडित अशुभ जानना तथा मध्यमाके जडसे लेकर (मणिबंध ) हाथके जडनाडी स्थानसे नीचेपर्यंत पूरी सीधी एक रेखा हो उसे ऊर्ध्वरेखा कहते हैं विशेषतः राज्यलाभ करती है यदि खंडित हो तो ( दुष्टफल) दुःख दरिद्र देतीहै और (क्षीण) अथवा माडी हो तो फलभी क्षीण ही देती है ॥२॥३॥ ____यवचिह्नफलम्। अंगुष्ठमध्ये पुरुषस्य यस्य विराजते चास्यवों यशस्वी ॥ स्ववंशभूषासहितो विभूषायोषाजनैरर्थगणश्च मयः॥४॥ जिस पुरुषके अँगूठेके बीचमें (यवरेखा) जौके दानेका रमणीय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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