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________________ (१७२) भावकुतूहलम्- गर्वितादिदशाः क्षोभितग्रहदशाफलम् । संक्षोभितस्यापि दशा विशेषाद्दरिद्रजातं कुमति च कष्टम् ॥ करोति वित्तक्षयमंघ्रिबाधां धनाप्तिबाधामवनीशकोपात् ॥ ९॥ शोभित ग्रहकी दशा विशेषतः दरिद्रताका केश करती है तथा कुत्सित बुद्धि, अतिकष्ट, धनक्षय, पैरोंमें पीडा. धनके आमदमें राजकोपसे बाधा करती है ॥ ९॥ क्षुधितग्रहदशाफलम् । | क्षुधितखगदशायां शोकमोहादितापः परिजनपरितापादाधिभीत्या कृशत्वम् ॥ कलिरपिरिपुलोकैरर्थबाधा नराणा मखिलबलनिरोधो बुद्धिरोधो विशेषात् ॥१०॥ क्षुधित ग्रहकी दशामें मनुष्योंके शोक, मोह ( अज्ञान ) आदि संताप होते हैं, स्वजनोंसे संताप मिलता है, मानसी व्यथा और भयसे शरीर दुबला होता ह, शत्रुजनोंसे कलह होताहै,तथा धनकी पीडा, समस्त बलका निरोध ( रुकावट ) बुद्धिका रोधभी विशेषतः होता है ॥१०॥ तृषितग्रहदशाफलम् । तृषितखगदशायामङ्गनामङ्गमध्ये भवति गदविकारो दुष्टकार्याधिकारः ॥ निजजनपरिवा दादर्थहानिः कृशत्वं । खलकृतपरितापो मानहानिःसदैव ॥११॥ तृषितग्रहकी दशामें शरीरियोके शरीरके बीचमें रोगका विकार होवै, दुष्टकार्यका अधिकार मिले, अपने मनुष्योंसे विवाद होवे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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