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________________ सप्तदशः १७] भाषाटीकासमेतम् । (१७१) अथ गाँवतदशाफलम् । नवालयारामसुखं नृपत्वं कलापटुत्वं विदधाति पुंसाम् ॥ मदार्थलाभं व्यवहारवृद्धिं दशा विशेषादिह गर्वितस्य ॥६॥ गर्वितग्रहको दशा पुरुषोंको नवीन घर, बगीचाका सुख, राजत्व तथा कला (६४ कलाओं) में चातुरी, मद, तथा धनका लाभ, व्यवहार में वृद्धि करती है ॥६॥ _ मुदितग्रहदशाफलम् । भवति मुदितपाके वासशाला विशाला विमलवसनभूषाभूमियोषासुसौख्यम् ॥ । स्वजनजनविलासो भूमिपागारवासो । है रिपुनिवहविनाशो बुद्धिविद्याविकाशः ॥७॥ मुदित ग्रहकी दशा में रहनेका घर बडा बनता है, निर्मल वस्त्र, भूषण तथा भूमि और स्त्रियोंका सुख मिलता है । अपने मनुष्य तथा साधारण मनुष्योंसे विलास, राजाके घरमें निवास, शत्रुसमूइका विनाश. बुद्धि तथा विद्याका प्रकाश होता है ॥ ७ ॥ लजितप्रहदशाफलम् । दिशति लज्जितखेटदशावशादतिविराममतीव / मतिक्षयम् ॥ सुतगदागमनं गमनं वृथा कलि। कथाऽभिरुचिं न रुचिं शुभे ॥८॥ लजितग्रहकी दशा विवशतासे रतिक्रीडाका विराम ( वियोग) बुद्धिका क्षय, पुत्रको रोग, व्यर्थ सफर, कलहसंबंधी वार्ता में रुचि और शुभकृत्यमें अरुचि करती है ॥८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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