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________________ पञ्चदशः १५ ] भाषाटीका समेतम् । अथ पंचमभावविचारः । लग्नाधीशे कुजक्षेत्रे पुत्रभावपतावरौ ॥ म्रियते प्रथमापत्यं ततोऽपि न सुतोद्गमः ॥ १७ ॥ ( १४९) 1 पंचमभावका विचार है कि, लग्नेश मंगलकी राशिमें हो तथा पंचमभावका स्वामी छठा हो तो प्रथम सन्तान मरजावे, उपरांत पुत्रोत्पत्ति न होवे ॥ १७ ॥ षडादित्रयगे नीचे पुत्रेशे पापसंयुते ॥ काकवंध्यापतिस्तत्र केतुचन्द्रसुतौ यदा ॥ १८ ॥ पंचमेश पापयुक्त होकर ६।७।८ भाव में नीचराशि वा नीचांशकमें हो और पंचम में केतु तथा बुध हों तो वह पुरुष काकवंध्याका पति होवे अर्थात उसकी स्त्री काकवंध्या ( केवल एकही सन्तान जननेवाली ) होवे ॥ १८ ॥ तदीशो नीचगो यत्र पुत्रभावं न पश्यति ॥ तत्रैव बुधमन्दौ वा काकवंध्यापतिर्भवेत् ॥ १९ ॥ • पंचमेश नीच राशि में हो और पंचम भावको न देखे . तथा पंचममें बुध शनि हों तो मनुष्य काकवंध्या (एक संतान जननेवाली ) स्त्रीका पति होवे ॥ १९ ॥ RA धर्माधीशोङ्गगो नीचे सुतेशो यदि जन्मनि ॥ केतुज्ञ पंचम स्यातां पुत्रं कष्टाद्विनिर्दिशेत् ॥ २० ॥ जन्म में नवमेश लग्नका हो तथा पंचमेश नीचराशिमें हो और बुध, केतु पंचम भावमें हों तो कष्टसे पुत्र कहना ॥ २० ॥ पंचमाधिपतिः केन्द्रे त्रिकोणे वा शुभैर्युतः ॥ तदा पुत्रसुखं सद्यो विलोमेन विलंबतः ॥ २१ पंचमेश केंद्र में वा त्रिकोणमें शुभ ग्रहोंसे युक्त वा दृष्ट हो तो पुत्रका $ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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