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________________ ( १४८ ) भावकुतूहलम् । [ भावविचार: तृतीयभावेश स्त्रीग्रह, शुक्र अथवा चन्द्रमा तृतीयभावमें हों तो भगिनी (बहिन ) होवे | यदि पुरुषग्रह तृतीयेश होकर तृतीयमें हो तो भाई होते हैं ॥ १३ ॥ अथ चतुर्थभावविचारः । सुखपतिः सुखगस्तनुनाथयुग्जनयति प्रवरालयमङ्गिनाम् ॥ त्रिकगतो विपरीतमिहादिभिः सुखजनुः पतिरेव तथा बुधैः ॥ १४ ॥ चतुर्थेश चतुर्थस्थानमें लग्नेशयुक्त हो तो शरीरियोंको बडे बडे घर मिलते हैं, यदि त्रिक ६।८।१२ स्थानमें हो तो विपरीत फल करता है । ऐसेही चतुर्थेश लग्नेश से भी पंडितोंने 'फल' कहा है १४ ॥ सुखाधीशे जीवे सुखनिवहचिन्ता भृगुसुते ॥ विभूषायोषाङ्गप्रवरतुरगाणामपि बुधे ॥ अगौमन्दे नीचोद्भवसुखमते रेवादिन पे पितुश्चन्द्रे मातुः क्षितिनिकरचिन्ता क्षितिसुते ॥ १५ ॥ चतुर्थेश बृहस्पति हो तो बहुत सुखकी चिंता रहे, चतुर्थेश शुक्र हो तो भूषण, स्त्री, शरीर तथा श्रेष्ठ घोडा आदियोंकी चिंता होवे, ऐसे ही बुधसे भी होती है. शनि तथा राहु चतुर्थेश हो तो नीचजनसंबंधी सुखकी चिंता होवे. सूर्य हो तो पितृपक्षकी चन्द्रमा हो तो मातृपक्षकी और मंगल हो तो भूमिसमूहसंबंधी चिंता रहे! ऐसाही विचार प्रश्नमेंभी प्रष्टा के मनकी चिंतामें करना ॥ १५ ॥ त्रिकोणे वाहनाधीशे केन्द्रे च बलसंयुते ॥ निजोच्चादिपदे नूनं वाहनं नूतनं भवेत् ॥ १६ ॥ बलवान् चतुर्थेश त्रिकोण ५१९ में हो अथवा केंद्र १|४|७| १० में अपने उच्चादिपद में हो तो निश्चय नवीन वाहन मिले ॥ १६ ॥ 3 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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