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________________ (१५०) भावकुतूहलम् । [ भावविचार:-- सुख शीघ्र होताहै। यदि विलोम (पंचमेश केंद्रकोणरहित स्थानों में शुभग्रहयोग, दृष्टि रहित) हो तो पुत्रसुख विलंबसे होता है ॥२१॥ सन्तानभवनाधीशो जन्मलग्नाधिपस्तथा ॥ नरराशौ तदा पुत्रः स्त्रीराशी कन्यका भवेत्॥२२॥ पंचमेश तथा जन्मलग्रेश पुरुषराशि ( विषमराशि) में हों व उपलक्षणसे विषम नवांशोंमें हों तो पुत्र होवे और स्त्रीराशि (समराशि) योंमें हों तो कन्या होती है (मिश्रितमें कन्या, पुत्र, तुल्य जानना ऐसे विचार प्रश्नमें भी है) ॥ २२ ॥ अथारिभावविचारः। रोगेशो लग्नगो यस्य निधनस्थोऽपि जन्मनि ॥ व्रणोदयस्तु सवाङ्ग सपापोनवणं दिशेत् ॥२३॥ छठेभावका विचार है-कि, रोगभाव (छठा स्थान) का स्वामी जिसका लग्नमें हो अथवा अष्टम हो तो उसके सर्वांगमें व्रण ( घाव) होवे. यदि वह ग्रह पाप युक्तभी हो तो व्रण न होवे ॥ २३ ॥ एवं तातादिभावशास्तत्तत्कारकसंयुताः॥ व्रणाधिपयुताश्चापि षडादित्रयभावगाः ॥२४॥ तेषामपि व्रणं वाच्यं जातकज्ञैः सुकोविदैः॥ कारकस्य दशाकाले व्रणमागन्तुकं दिशेत् ॥२५॥ इसी प्रकार पितृमातृआदि भावोंके स्वामी उन्हीं उन्हीं कारकोंसे युक्त एवं व्रणाधिप (षष्ठेश) से युक्त हों तथा ६७७८भावोंमें हों तो उन पितृमात्रादियोंके अंगोंमें जातक जाननेवाले अच्छे चतुरोंने विचारपूर्वक चतुरतासे व्रण कहने । ये व्रण उसी कारक ग्रहके दशासमयमें होनेवाले कहने ॥ २४ ॥२५॥ शिरोदेशे भानुर्मुखपरिसरे शीतगुरलं धरासूनुः कण्ठे जनयति बुधो नाभिनिकटे॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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