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________________ ( १४० ) [ मारकादियोगाः भावकुतूहलम् - मारकग्रहकी दशाके (असम्भव ) वर्त्तमान न होने एवं बहुत दूर मारक ग्रहदशा होने में, अथवा मारकदशा मुक्त होजाने में व्ययाधीशकी दशामें मनुष्यों की मृत्यु होजाती है । उसकाभी पूर्वोक्त • प्रकारों से अभाव हो तो व्ययभावेशके साथ जो ग्रहसम्बंध करता हो अथवा मारकेशसे जो सम्बंध करता हो उसकी दशामें मृत्यु होती है ॥ ९ ॥ तदभावेऽष्टमेशस्य दशार्यां निधनं पुनः ॥ दुष्टतारापतेः पाके निर्याणं कथितं बुधैः ॥ १० ॥ पूर्वोक्तके अभाव से अष्टमेशकी दशामें मरण होता है, अथवा दुष्टराशि ८ २ का पतिकी दशामें यद्वा पापग्रहदशामें मृत्यु पंडितोंने कही है ॥ १० ॥ अथ राजयोगाः । नवमभावपतिस्तनयालये सुतपतिर्नवमे यदि जन्मिनः ॥ अतिविचित्रमणिवजमण्डितो वसुमती विभुतां स नरो व्रजेत् ॥ ११ ॥ अब राजयोग कहते हैं - जिसके जन्ममें नवमभावका स्वामी पंचमभावमें तथा सुतेश नवमस्थान में हो तो बहुत मूल्यके अनेक प्रकार मणि रत्न समूहोंसे भूषित होकर पृथ्वीका राजा होवे ॥ ११॥ कर्माधीशः सुतस्थाने सुतेशः कर्मगो यदा ॥ त्रिकोणपतिना दृष्टो राजा भवति निश्चितम् ॥ १२ ॥ जिसके जन्म में दशमेश पंचमस्थान में, पंचमेश दशमस्थानमें, त्रिकोण ९१५ भावेश में दृष्ट हो तो निश्चय राजा होता है ॥ १२ ॥ राज्येशाङ्गपवाहनेशसुतपा धर्मालये स्वामिना संयुक्ता यदि वांक्षिताश्च बलिनो राजा भवेन्मानवः॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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