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________________ चतुर्दशः १४] भाषाटीकासमेतम् । (१४१) पुत्रेशो यदि धर्मपेन सहितो लगाधिपेनाङ्गगोदृष्टो वा सहितः मुखेऽपि दशमे राजा भवेनिश्चितम् १३ जिसके जन्मलग्नसे दशमेश लग्नेश चतुर्थेश और पंचमेश नवमेशसे युक्त वा दृष्ट हों तथा बलवान्भी हो तो वह मनुष्य राजा होवै और पंचमेश यदि नवमेश तथा लग्नेशसे युक्त होकर लम हो अथवा दशममें यदा चतुर्थस्थानमें नवमेश लगेशसे युक्त वा दृष्ट हो तो निश्चय राजा होवै ॥ १३ ॥ यत्र कुत्रापि केन्द्रेशस्त्रिकोणपतिना युतः॥ सबलो मनुजो राजा दुर्बलो धनपो भवेत्॥ १४ ॥ केन्द्र १।४।७।१० कास्वामी किसी भावमें, त्रिकोण९।९भावके स्वामीसे युक्त हो बलवान्भी हो तो मनुष्य राजा होवै, यदि निर्बल हो तो धनवान होवे ॥१४॥ पुण्यस्थाने गुरुक्षेत्रे दशमे भृगुणा युते ॥ पञ्चमस्वामिना दृष्टे राजपुत्रो नराधिपः ॥ १५॥ लग्नेश नवममें अथवा बृहस्पतिकी राशि ९।१२में वा दशमस्थानमें शुक्रसहित हो तथा पंचमेश उसे देखे तो राजाका पुत्र राजा होवे अन्य नहीं ॥ १५॥ अथ धनिकयोगाः। पञ्चमे निजभ शुक्र लाभे रविसुते यदा॥ भोक्ता मणिसुवर्णानामधिपो जायते नृणाम् ॥१६॥ शुक्र अपनी राशि२७ का पंचमस्थानमें हो और लाभभावमें शनि हो तो मणि और सुवर्णका भोगनेवाला राजा होवै ॥ १६ ॥ कर्कटे तु कलानाथे पंचमे लाभगे शनौ ॥ नानाधनसममृद्धिः स्याद्धर्मवृद्धिश्च भूपता ॥१७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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