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________________ चतुर्दशः १४ ] भाषाटीकासमतम् । ___(१३९) सममायुराहुः ॥ बालग्रहो हितसमारिपदेपि पूर्ण मध्यं च हीनामह जातकतत्त्वविज्ञाः॥६॥ योगसे अल्प,मध्यम,दीर्घ आयु कहते हैं कि,यदि लग्रेश मर्यका शट हो तो अल्पायु, मित्र हो तो पूर्णायु, सम होतो मध्यमायु होती है। अथवा लग्नेश मित्रगृही हो तो पूर्ण, समके राशिमें हो तो मध्यम और शडराशिमें हो तो अल्प आयु होती है। यह जातकोंके तत्त्व जाननेवाले कहते हैं। (आयुका प्रमाण ४० पर्यन्त अल्प, ८० पर्यन्त मध्यम, १२० पर्यन्त पूर्ण है परन्तु कलिकालमें लोभमोहादि तथा अनाचार, कुपथ्य, झूठ, कूट आदियोंके करनेसे मनुष्योंकी परमायु ६०के लगभगही हो जाती है इस व्यवस्थामें इसके ३ भाग २० पर्यंत अल्प, ४० लौं मध्यम, ६० पर्यंत पूर्ण आयु जाननी॥६॥ आयुस्थान मारकस्थानकथनम् । अष्टमई तृतीयं च बुधैरायुरुदाहृतम् । द्वितीयं सप्तमं स्थानं मारकस्थानमुच्यते॥७॥ । लगसे अष्टम तथा तृतीय आयुस्थान पंडितोंने कह हैं और लनसे दूसरा और सप्तम स्थान मारक संज्ञक कहे हैं ॥७॥ । ___ मृत्यु निश्चयः। मारकेशदशापाके मारकस्थस्य पापिनः ॥ पाके पापयुजा पाके संभवे निधनं विशेत् ॥८॥ मारकभावका स्वामी दशामें मारकस्थानस्थित पापग्रहकी । अन्तर्दशा आनेसे सम्भव रहते मरण कहना । अथवा पापग्रहोंकी दशामें पापयुक्त मारकेशकी दशादिमेंभी मृत्यु होती है ॥८॥ असंभवे व्ययाधीशदशायां मरणं नणाम् ॥ अभावे व्ययभावेशसंबंधिग्रहमुक्तिषु ॥९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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