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________________ द्वादशः १२] भाषाकासमेतम् । (१३१) . राहु नृत्यलिप्सावस्थामें हो तो मनुष्योंको बडे बडे रोग बढें. नेत्रोंमें रोग रहे, शत्रुका भय होवै,धन और धर्मका क्षय होवे॥१०॥ कौतुके च यदा राही स्थानहीनो नरो भवेत् ॥ परदाररतो नित्यं परवित्तापहारकः॥११॥ राहु कौतुकावस्थामें जिस मनुष्यका हो वह स्थान (गृह भूमि) से रहित रहे, सर्वदा पराई स्त्रीमें रमित रहे, पराये धनका हरण करनेवाला होवै ॥११॥ । निद्रावस्थागते राहौ गुणग्रामयुतो नरः ॥ कान्तासन्तानवान्धीरोगर्वितो बहुवित्तवान् ॥१२॥ । राहु निद्रावस्थामें हो तो मनुष्य अनेक गुणोंके समूहसे युक्त होवै, स्त्रीपुत्रवाला होवै, धैर्यवान गर्वित (घमंडखोर) और बहुत धनवान होवे ॥ १२॥ - अथ केतोरवस्थाफलानि । मेषे वृषेऽथ वा युग्मे कन्यायां शयनं गते ॥ केतौ धनसमृद्धिः स्यादन्यभे रोगवर्द्धनम् ॥ १॥ केतु मेष, वृषभ, मिथुन,कन्या राशिमेंसे किसीमें शयनावस्थाका हो तो धनकी समृद्धि होवे, अन्य राशियोंमें हो तो रोग बढे ॥१॥ उपवेशं गते केतो दट्ठरोगविवर्द्धनम् ॥ अरिवातनृपव्यालचौरशङ्कासमंततः॥२॥ . केतु उपवेशावस्थामें हो तो ददु (दाद ) का रोग बढे, शत्रुः समूह, राजा, सर्प, चोरोंसे शंका (भय ) होवै ॥२॥ नेत्रपाणिं गते केतौ नेत्ररोगः प्रजायते ॥ दुष्टसपादिभीतिश्च रिपुराजकुलादपि ॥ वित्तं विनाशमायाति मतिश्च चपला भवेत् ॥ ३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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