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________________ ( १३२ ) भावकुतूहलम् - [ ग्रहावस्थाफलम् - केतु नेत्रपाणि अवस्था में हो तो नेत्रों में रोग रहे, दुष्टजन्तु सर्पा दिकोंका भय होवै, तथा शत्रुसे राजकुलसे भय होवे, धनका नाश हो, बुद्धि चंचल रहे ॥ ३ ॥ ॥ प्रकाशने गते केतौ धनधान्यसमुन्नतिः ★ राजमानं यशोलाभं विदेशे सौख्यमाप्नुयात् ॥४॥ केतु प्रकाशावस्था में हो तो अन्न धनकी वृद्धि होवे, राजासे मान मिले, यश बढे, विदेश में सौख्य होवे ॥ ४ ॥ गमने तु यदा केतौ पुत्रसंपत्तिमान्नरः ॥ पण्डितो राजमानी च धनेन परिपूरितः ॥ ५ ॥ केतु गमनावस्था में हो तो पुत्रों की संपत्तिवाला मनुष्य होवै तथा पंडित होवे, राजासे मान पावे, धनसे परिपूर्ण रहे ॥ ६ ॥ केतावागमने दुष्टमतिः श्रीरहितः पुमान् ॥ कामी धीधर्महीनश्च जायते क्रोधनः शठः ॥ ६ ॥ केतु आगमावस्था में हो तो पुरुषकी दुष्टबुद्धि होवे, लक्ष्मीरहित रहे, कामी होवे, सद्बुद्धि तथा धर्मकर्मसे हीन रहे, क्रोधी और ठगुआ होवै ॥ ६ ॥ सभावस्थागते केतौ वाचालो बहुगर्वितः ॥ कृपणो लंपटश्चैव धूर्तविद्याविशारदः ॥ ७ ॥ केतु सभावस्था में हो तो बडा वाचाल होवे, गर्वित ( बुडा मिजाजी ) होवे, कृपण (सूम ) होवे तथा लोभी होवे और धूर्तविद्यामें भी निपुण होवे ॥ ७॥ यदागमे भवेत्केतुः केतुः स्यात्पापकर्मणाम् ॥ बंधुवादरतो दुष्टो रिपुरोगनिपीडितः ॥ ८ ॥ केतु यदि आगमनावस्था में हो तो मनुष्य पाप कर्मोंका ध्वजा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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