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________________ (१३०) भावकुतूहलम् । [ग्रहावस्थाफलम् राहु गमनावस्थामें हो तो मनुष्य बहुत संतानवाला होवै, पांडत तथा धनवान् ,उदार, राजपूज्य और मनुष्योंमें श्रेष्ठ होवे ॥५॥ राहावागमने क्रोधी सदा धीधनवर्जितः॥ कुटिलः कृपणः कामी नरो भवति सर्वथा ॥६॥ राहु आगमनावस्थामें हो तो मनुष्य क्रोधी होवे, सर्वदा बुद्धि एवं धनसे रहित रहे, कुटिल होवै, कृपण (कंजूस) होवै और सर्वप्रकारसे अतिकामी होवै ॥६॥ सभागते यदा राही पण्डितः कृपणो नरः ॥ नानागुणपरिक्रान्तो वित्तसौख्यसमन्वितः ॥७॥ राहु सभावस्थाम हा ता मनुष्य पाडत हाव परन्तु कृपण हाव अनेकगुणोंसे युक्त एवं धनसुखसे युक्त रहे ॥७॥ चेदगावागमं यस्य याते तदा व्याकुलत्वं सदा रातिभीत्या महत् ॥ बंधुवादो जनानां निपातो भवेद्वित्तहानिः शठत्वं कृशत्वं तथा ॥ ८॥ राहु आगमावस्था में जिसका हो वह सर्व शत्रुके भयसे व्याकुल रहे जातिभाइयोंमें कलह रहे, कुटुम्बमें मनुष्य न रहे, धनकी हानि होवे, मूर्खता रहे, शरीर कृश (माडा ) भी रहे ॥ ८॥ भोजने भोजनेनालं विकलो मनुजो भवेत् ॥ मन्दबुद्धिः क्रियाभीरुः स्त्रीपुत्रसुखवार्जतः ॥ ९॥ जिस मनुष्यका राहु भोजनावस्था हो वह भोजनसे विकल रहे अर्थात् भोजनप्राप्ति कठिनतासे होवै,बुद्धि मन्द होवे, कार्य करनेमें डरे (आलसी होवे ) स्त्रीपुत्रोंके सुखसे वर्जित रहे ॥९॥ नृत्यलिप्सागते राहो महाव्याधिविवर्द्धनम् ॥ नेत्ररोग रिपोभीतिद्धनधर्मक्षयो नृणाम् ॥१०॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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