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द्वादशः १२] भाषाटीकासमेतम् । (१२९) वृष, मिथुन कन्या, मेषराशिमें हो तो अन्न, धनकी राशि ( समुदाय) मिलते रहें ॥१॥
उपवेशनमिह गतवति राही ददुगदेन जनः परितप्तः॥राजसमाजयुतोबहुमानी वित्तसुखेन सदा रहितः स्यात् ॥२॥ जिसका राहु उपवेशनावस्थामें हो वह दद्रु (दाद) रोगसे संतप्त रहे, तथा राजाकी सभामें बैठनेवाला बड़े मानवाला होवै, परंतु धनके सुखसे सर्वदा रहित रहे ॥२॥
नेत्रपाणावगौ नेत्रे भवतो रोगपीडिते ॥ दुष्टव्यालारिचौराणां भयं तस्य धनक्षयः॥३॥ राहु नेत्रपाणि अवस्थामें हो तो नेत्र सर्वदा रोगसे पीडित रहें और दुष्ट सर्प शत्रु चोर आदियोंका भय और धनका क्षय होवे ॥३॥
प्रकाशने शुभासने स्थितिः कृतिः शुभा नृणां धनोन्नतिगुंणोन्नतिः सदा विदामगाविह । धराधिपाधिकारिता यशोलता तता भवेनवीननीरदाकृतिर्विदेशतो महोन्नतिः ॥ ४॥ राहु प्रकाशनावस्थामें हो तो उत्तम स्थानमें स्थिति होवै,उत्तम यश मिलै, धनकी उन्नति (वृद्धि) होवै,ऐसेही सद्गुणोंकी वृद्धि होवै सर्वदा पांडित्य, चातुर्यता होकर राज्याधिकारिता मिले, यशरूपी लता बहुत फैले, नवीन मेघ (बादल) कीसी आकृति होवै, परदेशसे बडी उन्नति मिले ॥४॥
गमने च यदा राही बहुसन्तानवानरः॥ पडिण्तो धनवान्दाता राजपूज्यो नरोत्तमः॥५॥
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