SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ५३५ ] बदले अपने कल्पित मन्तव्यके कदाग्रहको विशेष पुष्ठकरता हुआ भोले जीवोंको उसीके भ्रम में गेरनेके लिये उत्सूत्रभाषणोंका और कुयुक्लियोंके विकल्पोंका संग्रह करके विशेष मिथ्यात्व बढ़ानेका कारण नहीं करेगा तोभी बहुत ही अच्छा है और ऋषभदत्त ब्राह्मणके घरे भगवान्का उत्पन्न होना सो नीच गौत्रका विपाक तथा आश्चर्य रूप होनेसे गुप्तपने रहे क्योंकि तीर्थंकर की उत्पत्ति सम्बन्धी दुनिया में कोई भी बात प्रगट नहीं हुई जिसको तो कल्याणक मानते हैं और नीच गौत्रका विपाक भोगे बाद भगवान् सिद्धार्थ राजाके घर पधारे सो प्रगटपने तीर्थंकर उत्पत्तिका बड़ा महोत्सव हुआ तथा तीर्थंकर उत्पत्ति सम्बन्धी दुनिया में भी प्रगटपने बात हुई और शास्त्रकारों ने भी उसीको कल्याणक माना और श्रीपार्श्वनाथस्वामी श्रीनेमिनाथस्वामी के तथा श्रीआदिनाथस्वामीके तीर्थंकरत्वपमे उत्पन्न होने में माता के चौदह स्वप्नोंकी व्याख्या करने सम्बन्धी भलामण शास्त्रकारोंने श्रीवीरप्रभुके गर्भापहारसे त्रिशला माता के चौदह स्वप्नोंकी खुलासा पूर्वक दी है इससे भी गर्भापहारको कल्याणकत्वपना सिद्ध है क्योंकि जो गर्भापहारको च्यवन कल्याणककी प्राप्ति नहीं होती तो शास्त्रकार महाराज श्रीपार्श्वनाथस्वामी आदि तीर्थंकर महाराजोंके च्यवन कल्याणक सम्बन्धी चौदह स्वप्नोंका विस्तार करनेके लिये उसीकी भलामण कदापि नहीं देते परन्तु प्रगटपने दी है इसलिये सामान्यता होने से गर्भापहारको कल्याणत्वपनेकी अवश्यमेव प्रगटपने प्राप्ति है तथापि उसीका निषेध करके कल्याणक नमानने के आग्रह में फसकर विशेष करके उसकी निन्दा करना सो तो प्रत्यक्षपमे गच्छकदाग्रहके अभिनिवेशिक मिथ्यात्वके सिवाय और क्या होगा सो पाठकगण स्वयं विचार लेवेंगे, - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy