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________________ [ ५३४ ] रख्खी परन्तु वर्तमान में गच्छकदाग्रहके अन्धपरंपरामें चलने वाले विवेक शून्यतासे साध्वाभास लोग प्रतिवर्षे श्रीपर्युषणा पर्वमें धर्मध्यानके दिनों में कल्याणकारी बातको भी अति निन्दनीक कहते हुए धर्माधर्मका विचार किये बिना गाडरीह प्रवाहसे निज परके सम्यकत्वरत्नको नष्ट करनेका और अनन्त भव भ्रमणका हेतु करते कुछ भी लज्जा नहीं रखते हैं। हा हा अति खेदः । इस पञ्चम कालमें तत्वज्ञान रहित, विवेक विकल, विद्वत्ताके अभिमान रूपी अजीर्णताके रोगसे ग्रस्त, जैनाभास, उत्सूत्रभाषक, तथा श्रीवीरप्रभुके निन्दक, भारीकर्म प्राणियोंने शास्त्रोंके प्रत्यक्ष प्रमाणोंको भी उत्थापन करके सत्य बातका निषेध करनेके लिये कुयक्तियों के भ्रमका और भगवंतकी आशातनाका कारण तथा गाढ़ मिथ्यात्व बढ़ानेवाला कैसा कल्पित मार्गको चलाया और चला रहे हैं जिन्होंकी आत्माका संसारमें परिभ्रमणका पार कब आवेगा जिसको तो श्रीज्ञानीजी महाराज जाने और ऐसे मिथ्यात्वके मार्गमें जिनाज्ञा विराधक दीर्घ संसारोके सिवाय आत्मार्थी तो कोई भी फसनेका संभव नहीं है तथापि कोई अज्ञान दशासे फसगये होवे उन्होंका तत्काल उद्धार करके श्रीजिनाज्ञा मुजब सत्य बातकी शुद्ध श्रद्धा जो सम्यक्त्वरत्न उसकी प्राप्ति के लिये ही यह मेरा लिखना अल्पसंसारीको उपयोगी हो सकेगा नतु मिथ्यात्वी दीर्घ संसारके लिये क्योंकि जो सत्यग्रहणकाभिलाषी आत्मार्थी प्राणी होगा सो तो शास्त्रोंके प्रमाणानुसार तथा यक्तिपूर्वक सत्य बातको देखते ही तत्काल उसीको ग्रहणकरके अपने अंधपरंपराके कदाबहका शीघ्र त्याग करेगा और भगवान्की आज्ञा मुजब अपने मात्म कल्याण करनेके कार्यमें उद्यम करेगा और अभिनिवेशिक मिथ्यात्वी दीर्घ संसारीहोगा सोतोसस्य बातका ग्राम करनेके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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