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________________ [ ६ ] तथा और भी देखिये गर्भापहारको अति निन्दनीक कहने वाले गच्छममवियोंको हृदयमें विवेक बुद्धि लाकर थोड़ासा भी तो विचार करना चाहिये कि कोई अल्प बुद्धिवाला सामान्य पुरुष भी जान बुझकर निन्दनीक काम नहीं कर सकता है तो फिर अनन्तबुद्धिवाले निर्मलअवधिज्ञानी और अनेक तीर्थ कर महाराजोंके परम भक्त तथा धर्मदेशना सुननेवाले एकभव करके ही मोक्षमें जानेवाले सौधर्मेन्द्रने जानबुझ करके गर्भापहारका अतिनिन्दनीक काम क्यों किया, क्योंकि तुम्हारे मन्तव्य मुजब तो गर्भापहार हुआ सो अति निन्दनीक हुआ सो अतिनिन्दनीक काम नहीं होना चाहिये तबतो ब्राह्मण कुल में ऋषभदत्त ब्राह्मणके घर में भगवान्‌का जन्म होता तो आप लोगोंके अच्छा होता परन्तु शास्त्रकार महाराजोंने तो ब्राह्मण कुल में भगवान्‌का जन्म होना अच्छा नहीं समझा और इन्द्र महाराजने भी भगवान्‌का ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होना तथा वहां ब्राह्मण कुल में ही जन्म होना इसको अच्छा नहीं याने अनुचित समझ करके ही तो अपने और दूसरोंके हितके लिये तथा भगवान्‌को भक्तिके लिये गर्भापहारसे भगवान्को उत्तम कुल में पधारनेका किया सो उसीको शास्त्रकारोंने खुलासापूर्वक लिखा इससे प्रत्यक्षपने सिद्ध होता है कि गर्भापहार अतिनिन्दनीक नहीं किन्तु अतीव उत्तम तथा कल्याणकारी है इसलिये जो श्रीजिनाज्ञाके अराधक आत्मार्थी होवेगें सो तो इन्द्र महाराजकी तरह गर्भापहारको अतीव उत्तम तथा कल्याणकारी मान्य करेंगें जिन्होंका शुद्ध श्रद्धा से आत्म कल्याण भी शीघ्र होजानेका संभव है और श्रीजिनाज्ञाके विराधक बहुलसंसारी गच्छकदा ग्रह के मिथ्या हठवादी अभिनिवेशिक मिथ्यात्वी होवेगें सो ही अति उत्तम कल्याणकारी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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