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________________ [ ४५८ ] च्छादि वाले सब कोई वार्षिक पर्व श्रीपर्युषणामें वचते हैं सो पाठ नीचे मुसब जानो यथा तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंच ह. त्युत्तरे होत्था,तंजहा; हत्युत्तराहिं च ए चइत्ता गम्भवकते ॥१॥ हत्युत्तराहिं गभ्भाओगम्भं साहरिए ॥२॥ हत्यत्तराहि जाए॥३॥ हत्यत्तराहिं मुडेभवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइए ॥४॥ हत्थत्तराहिं अण ते अणतारे निवाघाए नि रावरणे कसिणे पडिपुन्ने केवल वर नाण दसणे समुपन्ने ॥५॥ • साइणा परिनिवडे भयवं ॥६॥ भावार्थ:-तिमकाल तिस समयके विषे श्रमण भगवान् श्री महावीर स्वामीके पांच कल्याणक हस्तोतरा (उत्तराफाल्गुनी) नक्षत्र हुवे वही दिखाते है-दशमें देवलोकके पुष्पोतर नामा विमानसे चवकरके जंबूद्वीपके दक्षिण भरतक्षेत्र में माहण कुंड ग्रामके ऋषभदत ब्राह्मणकी देवान दानामा स्त्रीको कूक्षिमें हस्तोतरा नक्षत्र, आषाढशुदी ६ को उत्पन्न हुवे सो प्रथम च्यवन कल्याणक ॥ तथा हस्तोत्तरानक्षत्र की आज्ञासे हरिनैगमेंषिदेवने देवानदाकी कूक्षिसे सहरण करके सत्रियकुंड नगरके सिद्धार्थराजाकी त्रिशला देवीपहराणीकी कूक्षिमें आश्विन वदी १३ को स्थापित किये सो गर्भापहार रूप दूसरा च्यवन कल्याणक॥तथा हत्तोतरा नक्षत्रमें चैत्र दी १३ को त्रिशला देवीकी कुक्षिसे जन्महुवा सो तीसरा जन्म कल्याणक ॥ तथा हस्तोतरा नक्षत्र में मार्गशीर्ष सदी १० के दिन गृहस्थावास छोड़कर द्रव्यभावसे मुडहुवे अणगार पणापाये अर्थात् श्रीवीरप्रभूने दीक्षाली सो चौथा दीक्षा कल्याणक ॥ तथा हस्तोत्तरा नक्षतमें वैशाख शुदी के दिन अनन्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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