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________________ [ ४५९ ] · अर्थ के विषयरूप अनु तर प्रधान निर्व्याघात सर्वप्रकार के अवरण रहित संपूर्ण वर (प्रधान) केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्तहुआ सो पंचम ज्ञान कल्याणक || और स्वाति नक्षत्र मे कार्तिक अमावस्याको श्रीवीरप्रभु निर्वाण पायें अर्थात् भोक्ष पधारे सो छठा मोक्ष कल्याणक ॥। अत्र देखिये चौदह पूर्वधर श्रुत केवी श्रीभद्रबाहुस्वामीजीने श्रीवोरप्रभके छः कल्याणक खुलामा पूर्वक कहे हैं जिसको नही मानने तथा मानने वालों को दूषित ठहरानासोतो मिथ्यात्व के क रणसे भेलजीव को सत्यबातपर से श्रद्धा भ्रष्टकर के मूलमंत्ररूपशास्त्र पाठकों प्रत्यक्ष उत्थापन करना सो उत्सूत्र भाषण करनेवालांही का काम है । २ - तथा श्रीवडग व्ळके श्रीविनय चंद्रसूरिजी कृत श्रीकल्पसूत्रके निरुक्त का छ कल्याणक सम्बन्धी पाठ नोचे म जब है यथा तेणं कालेणं मित्यादि, ते पंत्ति प्राकृत शैलीवशात् तस्मिन् काले, तस्मिन् समये, यः पूव तीर्थंकरैः श्री वीरस्य च्यवनादि हेतुर्ज्ञातः कथितश्च यस्मिन् समये तीर्थंकर च्यवनं स एव समय उच्यते । समयः कालनिर्द्वारणार्थे यतः कालो वर्णोपि, तथा हस्तउत्तरो यासां ता हस्तातरा उत्तराफाल्गुन्यो, बहुवचनं बहुकल्याणकापेक्षं तस्यां विभोश्च्यवनं, गर्भाद्गभे संक्रांतिः, जन्म, व्रतं, केवलं, चाभवत्, निर्वृतिः स्वातौ, इति ॥ ३-और श्रीखरतरगच्छ के श्रीजिनप्रभसूरिजी कृत श्री कल्पसूत्रकी सदेहविधि वृतिका पाठ नीचे मुजब जानो यथा;तोयोधिपतित्वेनासन्नोपकारित्वात् प्रथमं वर्त्तमान श्रीवर्द्धमानखामिनश्चरितमाहुः ॥ श्रीभद्रबाहु स्वामी पादाः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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