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________________ [ ७८ ] च्यवन हुए सो आचारांग, आवश्यक वृत्ति भगवती समवायांग वीर चरित्र और कल्पसूत्रादि अनेक शास्त्रोंमें लिखा है सो इस बातको सब कोई मानते हैं इसी तरह से १२० कल्याण क लिखे हैं तिसपर भी दो भव दो च्यवन दो वार माताओंने स्वप्न देखे दो माता दो पिता इत्यादि कारणसे वीरके दो व्यवन कल्याणकके हिसाब से १२१ होते हैं सो न्यायानुसार मानने ही पड़ेंगे इस लिये ज्ञान विमल सूरिजी का १२१ कल्याणक तो शास्त्रमें देखते नहीं लिखा यह तर्क व्यर्थ है इस बातको भी निस्पक्षपाती विवेकी तत्वज्ञजन स्वयं विचार सकते हैं । और आगे फिर भी भगवानके पांच कल्याणक दिखानेके लिये उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र देवतानुं शरीर छोड़ी माताने उदर मां अवतरघां १ “उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रे जन्म कल्याणक थयूं २, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र दीक्षा लिधी ३, उत्तरा फाल्गुणी नक्षत्र मां केवल ज्ञान पाम्यां ४, स्वाति नक्षत्रमां मोक्ष पहोच्या ५ इस तरहसे वीर प्रभुका चरित्रको आदिमें कल्पसूत्रकी व्याख्या लिखते हुए पांच दिखाये परन्तु मूलसूत्रमें और उसकी व्याख्या ओंमें तथा आचारांग स्थानांगादि अनेक शास्त्रों में उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र मे” गम्भाओ गम्भंसाहरिए इस पाठसेगर्भापहार रूप दूसरा च्यवन खुलासा पूर्वक मासादि तिथि सहित लिखा है इसलिये मूलसूत्र पाठको बातको उठा देना या तस्कर वृत्ति करके गच्छ कदाग्रहसे छुपा देना ज्ञान विमल सूरिजी को उचित नहीं था खैर आत्म हितार्थी पाठकगण से मेरा यही कहना है कि मूल आगमों में श्री वीर प्रभुके चरिप्राधिकारे सर्वत्र छ कल्याणक खुलासा स्पष्ट लिखे हुए हैं इस लिये इस बातको निषेध करनेको कोई भी समर्थ नहीं है ज्यादा क्या लिखूं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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