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________________ [ ७९ ] प्रश्न-अजी आप आगमोक्त प्रमाणोंसे और यक्तियों के अनुसार श्री वीरप्रभुके छ कल्याणक दिखाते हो परन्तु तीर्थ कर महाराजके च्यवन जन्म दीक्षादि पांचों कल्याणकोमें तीन जगतमें उद्योत होता है सब संसारी जीवोंको क्षणमात्र सुखकी प्राप्ति होती हैं तथा इन्द्र महाराज उसी समय नमोत्थुणं से नमस्कार करते हैं और ६४ इन्द्रादि अनेक कोटाकोटी देवता देवी नंदीश्वर नामा आठमैं द्वीपमें जाकर वहां साश्वते मन्दिरों में अठाई उच्छव करते हैं इस लिये उनोंको कल्याणक मानते हैं परन्तु श्री वीर प्रभुके गर्भ हरणमें तो ऊपरको बातें होनेका देखने में नहीं आता तो फिर गर्भ हरणको कल्याणक कैसे माना जावे। उत्तर-भो देवानुप्रिये ! अतीव गंभीरार्थयुक्त नय गर्मित अपेक्षावाले स्यादवाद शैलीके जैनागम शास्त्रोंको विनय पूर्वक गुरु गम्यतासे पढ़ते तथा विवेक बुद्धिसे आगमोंके भावार्थको हृदयमें धारण करते ओर गच्छ के पक्षपात कदाग्रह रहित होते तो वीर प्रभुके गर्भहरण रूप दूसरे च्यवन कल्याणक में नमोत्थुणं वगैरह न होने का कदापि न कहते और गीतार्थ मुगुरु से इस बातका निर्णय किये बिना अपनी कल्पना मुजब मान लेना आत्मार्थियों को उचित नहीं है क्योंकि देखो अनादिकालसे उसीको च्यवन कल्याणक कहते है तीर्थ कर देवलोकसे यष करके माताकी कूक्षिमें उत्पन्न होते हैं उसमें जो जो कर्तव्य बनते हैं सो वे ही सब कर्त्तव्य श्रीवीरप्रभुके गर्भहरण रूप दूसरे च्यवन कल्याणकरें भी होनेका समझना चाहिये जिस पर भी कोई कहेगा, कि गर्भहरण तो एक आश्चर्य रूप हुआ है उस आश्चर्य ने ममोत्थुणं वगैरह होनेका कैसे सम्भव हो सके तो इसके उत्तरने हमको सिर्फ इतना ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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