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________________ [ ७८२ ] कल्पित झूठा कदाग्रह कदापि नहीं कर सकते हैं इसी तरहसे उस समय तम चैत्यवासियोंने अपने अपने गच्छममत्व रूप दाडे बन्धन में अपने अपने दृष्टि रागियोंको फंसा लिये थे तथा अपने गच्छके अविधिसे मंदिर बनवाये और भ्रष्टाचार में पड़कर आजिजीका करते हुए काल व्यतीत करते थे और अपनी र कल्पित कपनाके माने हुए मन्तव्य के विरुद्ध चाहे वो जिनाचा मुजब शास्त्रानुसार होवे तो भी अपने अधिकार के मंदिर (चेट) में दूसरे गच्छ वाले किसीको भी कोई भी कार्य नहीं करने देते थे इस लिये उन चैत्यवासीनी जतमीने भी अपने गच्छ के मन्दिर में श्रीजिनवल्लभ सूरिजी महाराजको देव बन्दनादि नहीं करने दिये तथा गच्छ| कदाग्रहसे मन्दिर के दरवाजे माडी गिर गई और अविचार से क्रोध युक्त अनुचित बर्ताव करके आगमार्थको समझे बिना स्त्री जातिको तुच्छ बुद्धिसे अपनी कल्पना मुजब कहने लगी कि पहिले किसोने भी मेरे मन्दिर में एसा नहीं किया तो यह कैसे करेंगे; इस तरहसे उस चैत्य वासीनी गच्छ कदाग्रही अज्ञानी जतनी (साध्वी ) का कथन सत्य नहीं हो सकता तथा श्रीजिनवल्लभ सूरिजीका भी वीर प्रभुके छठे कल्याणक संबन्धी कथन तथा उसीके लिये मन्दिर में देव बन्दना के लिये जाना भी शास्त्र विरुद्ध कल्पित नहीं हो सकता किन्तु इन महाराजका कथन तो आगमानुसार जिनाना मुजब ही समझना चाहिये । तिस पर भी उस चैत्य वासीमी अद्यानि जतनिका कदाग्रही कथनकी विवेक बुद्धि गुरुगम्यआगमार्थसे सत्यासत्यका निर्णय किये बिना गम्भरोह प्रवाहकी तरह अन्ध परंपराका गच्छ कदाग्रह से आगे करके उसी तरहका दृढ़ कदाग्रहसे आगमोक्त छठेकल्यणक संबंधी भी जिनवल्लम सूरिजी के सत्य कथनको झूठा ठहरानेका उद्यम करने वाले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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